15 अगस्त को पूरा देश आजादी की वर्षगांठ मनाता है, हम अनगिनत
कुर्बानियों के बाद 200 साल की गुलामी से
आजाद हुए, अब हमारी आज़ादी की 72
वर्षगांठ पर मै अपने अंचल के शहीदों को भी नमन करता हूँ जिन्होंने ब्रिटिश हुकूमत
के खिलाफ मोर्चा खोला और ब्रिटिश अन्याय का डटकर मुकाबला किया - /
इन्ही में से एक है शहीद गुंडा धुर -जिनके नाम पर आज न जाने कितनी संस्थाए अपनी पहचान बना चुकी है /
Image of Gunda Dhur at village Netannar |
आज की पीड़ी शायद गुंडाधुर के नाम से भली भांति परिचित होगी, इस अवसर
पर अपने ब्लॉग के माध्यम से ग्राम नेतानार के गुन्डाधुर के योगदान को मै याद करता
हूँ, और नमन करता हु/
कौन है गुंडा धुर:-
वैसे तो इतिहास में एक रिबेलियन के तौर पर यह नाम दर्ज है, 1910 के
दरम्यान बस्तर में ब्रिटिश हुकूमत के लिए यह नाम खौफ का पर्याय था, जहाँ एक तरफ क्रांतिकारी
चंद्रशेखर आजाद और भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव, राम प्रसाद बिस्मिल का नाम उत्तर भारत में क्रन्तिकारी गतिविधियों के
संचालन में तो दर्ज है तो दूसरी तरफ बस्तर जिले के कांगेर के जंगलो में हुई विद्रोह की अगुवाई करने में गुंडा धुर का नाम सबसे पहले लिया जाता है , उनके साथ उनके साथी मूरत सिंह
बक्शी , बालाप्रसाद नज़ीर तथा कलंदरी थे का नाम भी बड़े सम्मान से लिया जाता है /
Gaurav Path at Rajnandgaon |
गुंडा धुर ने अपने 50 से ज्यादा आदिवासी लोगों के साथ 1910 में ब्रिटिश
साम्राज्य से मुकाबला किया था , और अंग्रेजो को बस्तर से खदेड़ने के हर संभव प्रयास
किये /
19 10 के विद्रोह में गुडा धुर की भूमिका क्या थी ?
जब ब्रिटिश सरकार ने कांगेर के दो तिहाई जंगलों को रिज़र्व घोषित कर
दिया तो आदिवासी भड़क उठे और वे सभी अग्रेजो के खिलाफ हो गए क्योकि इस व्यवस्था से
उनके हित बुरी तरह प्रभावित हो रहे थे , उन्होंने धीरे धीरे संगठित होना शुरू किया
, आदिवासियों को एक जुट करने में गुंडा धुर की अहम् भूमिका थी 18 57 की क्रांति
में जिस तरह कमल एवं चपाती के सहारे क्रांति का सन्देश भेजा जाता था ठीक उसी
तरह, लाल मिर्च, मिट्टी, तीर धनुष व आम की
टहनी सन्देश वाहक का प्रतिक थी /
गुंडा धुर की अगुवाई में यह फैसला लिया गया कि एक परिवार से एक सदस्य को
ब्रिटिश हुकूमत से लड़ने के लिए भेजा जायेगा ,गुंडा धुर की नेतृत्व में ये योद्धा
ब्रिटिश अनाज के गोदामों को लुटते और उसे गरीबों में बाँट देते थे / इसके आलावा
स्थानीय जमींदार और नेताओं द्वारा किये जाने वाले अन्याय के खिलाफ भी गुंडा धुर ने
आवाज़ उठाई थे /
ब्रिटिश की दमनकारी नीति :
गुडा धुर और उनके टोली ब्रिटिश हुकूमत के लिए एक चुनौती थी / कई बार
ब्रिटिश सेना को गुफाओं में शरण लेनी पड़ी,
जब गुंडा धुर ने बात चीत करनी चाही तो ब्रिटिश सेना ने गावों और गुडा
धुर की टुकड़ी पर हमला कर दिया , हालाँकि , ब्रिटिश सेना विजयी हुई मगर वह गुंडा
धुर को पकड़ने में कामयाब नही हो सकी / गुडा धुर के इसी प्रयास की वजह से कांगेर
जंगलों के सम्बन्ध में लिया गया फैसला ब्रिटिश सरकार को वापस लेना पड़ा / और गुडा
धुर ब्रिटिश को बस्तर से खदेडने में कामयाब रहे /
गुडा धुर की इस लड़ाई को भूमकाल के नाम से जाना जाता है आज गुडाधुर के
नाम से सरकार ने कई शैक्षणिक संस्थाए व संगठन संचालित है / स्वाधीनता की 72 वीं वर्षगाठ पर गुडा धुर को सलाम !
2 Comments
Never knew this
ReplyDeleteReally ! but it is true. Bastar had such a heroic figure. I hope you have read my other blogs as well.
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