चाँद से थोड़ी सी गप्पें

शब्दार्थ
सिम्त    -     दिशाएँ
कुल        -     सारा
मरज़        -   मर्ज़ बिमारी
गाकि       -    यद्यपि
हालाँकि बुद्धू - बेवकूफ  कम बुद्धि का
निरा         -     पूरा
दम        -     साँस

1. गोल है खूब -------------------------- गोलमटोल
संदर्भ- प्रस्तुत काव्यांश हमारी पाठ्य पुस्तक 'वसंत के चाँद से थोड़ी सी गप्पें 'से लिया गया है। इसके कवि 'शमशेर बहादुर सिंह' जी हैं।
वसंत के चांद से थोड़ी सी गप्पें

प्रसंग- इस कविता में कवि ने एक छोटी सी बच्ची के माध्यम से चन्द्रमा के गोल-मटोल रूप का वर्णन किया है।
अर्थ-कवि कहते है। कि वह छोटी सी बच्ची चाँद से बातें करते हुए कहती है कि हे चन्द्रमा! जब भी मै तुम्हें देखती हूँ तुम कुछ तिरछे-तिरछे नज़र आते हो। तुम्हारे चारों तरफ फैला यह आकाश ऐसा लगता है जैसे तुमने इसे कपडे़ के समान पहन रखा है। और तुम्हारा यह वस्त्र ऐसा लगता है तरों से जड़ा हुआ है। आकाश के बीच तुम ऐसे नज़र आते हो जैसे तुमने अपना बाकी का शरीर छिप कर बस अपना गोरा चिट्टा गोल मटोल सा मुँह दिखा रहे हो।



2. अपनी पोशाक को -------------------------आता है

संदर्भ- प्रस्तुत काव्यांश हमारी पाठ्य पुस्तक वसंत के चांद से थोड़ी सी गप्पें से लिया गया है। इसके कवि शमशेर बहादुर सिंह जी हैं।
प्रसंग- इसमें चाँद के घटने -बढ़ने के बारे में बताया गया है।
अर्थ - बच्ची कहती है, हे चन्द्रमा आपने ये वस़् चारों दिशाओं में फैला रखा है। और क्या आप हमें बुद्धु समझते हो । हम जानते हैं कि आपको कोई बिमारी है। उसी बिमारी की वजह से आप घटते हो तो घटते ही चले जाते हो और बढ़ते हो तो बढ़ते ही चले जाते हो जब तक चन्द्रमा पूरे गोल न हो जाते । वह कहती है कि आपको तो ऐसी  बिमारी है जो कभी ठीक ही नहीं होती ।

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