दिल्ली के इतिहास की की शरूआत वहाँ से होती जब यह गुलाम वंष ने अपना अधिपत्य जमाया । हांलाकि चैहान वंष के समाप्ति के बाद दिल्ली का महत्व काफी बढ़ गया था । इससे पहले कन्नौज, अजमेर सामरिक और व्यापारिक महत्व की जगहें थी । जानते हैं क्या हुआ
दिल्ली,कन्नौज, अजमेर, बनारस इत्यादि महत्वपूर्ण जगहों पर कब्जा करने के बाद गौरी गजनी लौट और भारत के जीते गए पं्रातों की बागडोर 15 मार्च 1206 में अपने गुलाम को सौंप गया । उसका नाम था कुतुबुद्ीन एबक
यहां से गुलाम वंष की नीव पड़ी जो 1206 से शुरू होकर 1290 तक चली। इस पीड़ी में आने वाले अधिकांष शासक गुलाम थे इसी लिए इस वंष का नाम गुलाम वंष पड़ा।
जानते हैं इस वंष के प्रमुख शासकों के बारे में
दिल्ली,कन्नौज, अजमेर, बनारस इत्यादि महत्वपूर्ण जगहों पर कब्जा करने के बाद गौरी गजनी लौट और भारत के जीते गए पं्रातों की बागडोर 15 मार्च 1206 में अपने गुलाम को सौंप गया । उसका नाम था कुतुबुद्ीन एबक
यहां से गुलाम वंष की नीव पड़ी जो 1206 से शुरू होकर 1290 तक चली। इस पीड़ी में आने वाले अधिकांष शासक गुलाम थे इसी लिए इस वंष का नाम गुलाम वंष पड़ा।
जानते हैं इस वंष के प्रमुख शासकों के बारे में
सबसे पहले कुतुबुद्दीन एबक
वह मुहम्मद गौरी का गुलाम। वह एक कुषल प्रषासक सबित हुआ। और अपनी सैनिक ताकत के दम पर एक षक्तिषाली राज्य का निर्माण किया । उसे अपनी ताकत बरकार रखने के लिए अपने प्रतिद्धंदियों को हाराना जरूरी था । गजनी का शासक योल्दोज ने उस वक्त पंजाब पर कब्जा जमा लिया था और अपनी क्षमता बढ़ा रहा था। एबक ने उसे हाराया और पजंाब को याल्दोज के चंगुल से आजाद कराया ।
एबक कुषल प्रषासक होने के साथ साथ कला,साहित्य और भवन निर्माण यानि स्थापत्य कला का षौकीन था।
डसने प्रसिद्ध कुतुब मीनार को बनाया मगर उसे पूरा नहीं कर सका । यह मिनार मषहूर सूफी संत कुतुबुद्दीन बख्तियार काकी के नाम पर बनाया गया था। खास बात यह है कि दिल्ली में मौजूद इस मिनार को तीन राजाओं ने पूरा किया एबक ने इसे शुरू किया फिर बेसमेंट ही बना पाया था कि उसकी मौत पोलो खेलते हुए हो गयी। इसके बाद अगली तीन मंजिलों को एल्तुतमिष ने पूरा करावाया मगर वह भी अधूरा ही बना पाया और उसकी मौत हो गई । फिर उसे फिरोज शाह तुगलक ने आखिरी के दो मंजिले बनाए।
खैर बात कर रहें कुतुबुद्दीन एबक के भवन निर्माण की तो एबक ने इसके अलावा दो और प्रसिद्ध भवन बनाए
दिल्ली में मौजूद क्वावत उल ईस्लाम नाम की मस्जिद और ढाई दिन की झोपड़ा नाम से मषहूर मस्जिद जो आज अजमेर है ।
ऐबक में एक और खूबी थी - उसने लाख बक्ष की उपाधि लोगों ने दी थी । क्योंकि वह बड़ा ही दयालु था और काफी दान करता था।
एबक के दरबार में हसन आजमी और मुबारक ष्षाह नाम के दो प्रसिद्ध साहित्यकार भी थे ।
1210 ई में पोलो खेल खेलते हुए एबक की मौत घोड़े से गिरकर हो गई । इसक बाद फिर शुरू हुआ सत्ता का संर्घष।
आरमषाह जो एबक का बेटा था वह षासक बनना चाहता था और ष्षासक बनाया भी गया था मगर नवाबों ने उसे बतौर षासक स्वीकार नहीं किया । तो ऐबक के दामाद को जो पहले एबक का गुलाम था उसे ष्षासन करने के लिए बुलाया गया । उसका नाम था एल्तुतमिष। इस तरह दिल्ली को एक और गुलाम बतौर ष्षासक मिला। एल्तुतमिष उस वक्त बदायुं का सुबेदार था।
एबक कुषल प्रषासक होने के साथ साथ कला,साहित्य और भवन निर्माण यानि स्थापत्य कला का षौकीन था।
डसने प्रसिद्ध कुतुब मीनार को बनाया मगर उसे पूरा नहीं कर सका । यह मिनार मषहूर सूफी संत कुतुबुद्दीन बख्तियार काकी के नाम पर बनाया गया था। खास बात यह है कि दिल्ली में मौजूद इस मिनार को तीन राजाओं ने पूरा किया एबक ने इसे शुरू किया फिर बेसमेंट ही बना पाया था कि उसकी मौत पोलो खेलते हुए हो गयी। इसके बाद अगली तीन मंजिलों को एल्तुतमिष ने पूरा करावाया मगर वह भी अधूरा ही बना पाया और उसकी मौत हो गई । फिर उसे फिरोज शाह तुगलक ने आखिरी के दो मंजिले बनाए।
खैर बात कर रहें कुतुबुद्दीन एबक के भवन निर्माण की तो एबक ने इसके अलावा दो और प्रसिद्ध भवन बनाए
दिल्ली में मौजूद क्वावत उल ईस्लाम नाम की मस्जिद और ढाई दिन की झोपड़ा नाम से मषहूर मस्जिद जो आज अजमेर है ।
ऐबक में एक और खूबी थी - उसने लाख बक्ष की उपाधि लोगों ने दी थी । क्योंकि वह बड़ा ही दयालु था और काफी दान करता था।
एबक के दरबार में हसन आजमी और मुबारक ष्षाह नाम के दो प्रसिद्ध साहित्यकार भी थे ।
1210 ई में पोलो खेल खेलते हुए एबक की मौत घोड़े से गिरकर हो गई । इसक बाद फिर शुरू हुआ सत्ता का संर्घष।
आरमषाह जो एबक का बेटा था वह षासक बनना चाहता था और ष्षासक बनाया भी गया था मगर नवाबों ने उसे बतौर षासक स्वीकार नहीं किया । तो ऐबक के दामाद को जो पहले एबक का गुलाम था उसे ष्षासन करने के लिए बुलाया गया । उसका नाम था एल्तुतमिष। इस तरह दिल्ली को एक और गुलाम बतौर ष्षासक मिला। एल्तुतमिष उस वक्त बदायुं का सुबेदार था।
एल्तुतमिष 1210 से 1236
एल्तुतमिष ने दिल्ली को अपनी राजधानी बनाया । ष्षासक बनते ही उसके सामने कई समस्याएं आती गई जिसे वह काफी कुषलता से हल करता गया । वह भी अपने ससुर तथा मालिक की तरह कुषल प्रषासक था।
गजनी का यल्दोज तथा सिन्ध और मुल्तान के कुबाचा का समाना किया । उसने तुर्कीस साम्राज्य को गजनी और अन्य विदेषी शक्तियों से आजाद कराया ।
वह सैनिक कूटनीति में भी माहिर था एक जूना के प्रिंस का पीछा करते हुए चंगेज खा आ रहा था और Prince ने एल्तुतमिष से षरण मांगी। एल्तुतमिष जानता था कि अगर उसने षरण दी तो चंगेज खां का भी सामना करना पड़ेगा जिससे काफी जानमाल की हानि होगी। अतः उसने प्रिंस को यह कहकर टाल दिया कि यहां की जलवायु उसके लिये उपयुक्त नहीं होगी।
इस प्रकार चंगेज खां के गुस्से से उसने अपने राज्य को बचा लिया।
गजनी का यल्दोज तथा सिन्ध और मुल्तान के कुबाचा का समाना किया । उसने तुर्कीस साम्राज्य को गजनी और अन्य विदेषी शक्तियों से आजाद कराया ।
वह सैनिक कूटनीति में भी माहिर था एक जूना के प्रिंस का पीछा करते हुए चंगेज खा आ रहा था और Prince ने एल्तुतमिष से षरण मांगी। एल्तुतमिष जानता था कि अगर उसने षरण दी तो चंगेज खां का भी सामना करना पड़ेगा जिससे काफी जानमाल की हानि होगी। अतः उसने प्रिंस को यह कहकर टाल दिया कि यहां की जलवायु उसके लिये उपयुक्त नहीं होगी।
इस प्रकार चंगेज खां के गुस्से से उसने अपने राज्य को बचा लिया।
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