भारतीय संविधान का इतिहास
प्राचीन हिंदू ग्रंथों में राज व्यवस्था और राजा के कर्तव्यों का उल्लेख मिलता है। प्राचीन काल में राजा धर्म ग्रंथों का अनुसरण करते हुए शासन व्यवस्था का संचालन करते थे। प्राचीन ग्रंथ वेदों में आम सभा और समिति का उल्लेख मिलता है जो शासन संचालन के कार्य में राजा का सहयोग करती थी, अन्य राज व्यवस्था से संबंधित ग्रंथों में कौटिल्य का अर्थशास्त्र बौद्ध तथा जैन धर्मों के ग्रंथ मनुस्मृति आदि प्रमुख है। लगभग छठी शताब्दी ईसा पूर्व भारत में 16 महाजनपदों का उदय हुआ। इनमें से अधिकतर राजतंत्रत्मक थे, किंतु वज्जि और मल्ल नाम के महाजनपद गणतंत्र थे। इन राज्यों में शासन राजा द्वारा नहीं चलाए जाते थे। इन राज्यों में शासन व्यवस्था गण या संघ नाम की समिति द्वारा चलाया जाता था। इस प्रकार हमारा देश लोकतांत्रिक
विधियों और व्यवहार से प्राचीन काल से ही परिचित था पर वर्तमान संविधान का स्वरूप अलग है जिसे गढ़ने के कार्य की शुरुआत अंग्रेजों ने की थी।
वर्तमान संविधान के स्वरूप को समझने के लिए और संविधान को अध्ययन सुविधा
की दृष्टि से तीन भागों में बांटा जा सकता है।
(1) ईस्ट इंडिया कंपनी के अधीन संविधानिक सुधार।
(2) ब्रिटिश पार्लियामेंट के अधीन संवैधानिक सुधार।
(3) संविधान सभा द्वारा संविधान का निर्माण
[ 1 ] ईस्ट इंडिया कंपनी के अधीन संवैधानिक सुधार
अंग्रेज व्यापारियों के एक दल ने 1599 को ईस्ट इंडिया कंपनी का गठन किया
और दक्षिण पूर्व एशिया के देशों से व्यापार करने का शाही चार्टर 31 दिसंबर
सन 1600 को प्राप्त कर लिया। देश की केंद्रीय शक्ति,
मुगल सम्राट औरंगजेब की 1707 में मृत्यु के बाद कमजोर पड़ गई। भारतीय
राजाओं के आपसी फूट का लाभ उठाकर अंग्रेज व्यापारी शासक की भूमिका में आ
गए। 1757 के प्लासी का युद्ध और 1764 के बक्सर युद्ध में मिली सफलता के साथ
देश के एक बड़े भूभाग पर अंग्रेजों का आधिपत्य स्थापित हो गया।
कंपनी शासन के अधीन 1726 का राज लेख (the charter act of 1726) महत्वपूर्ण
है। इस राज लेख से पूर्व विधि बनाने का अधिकार इंग्लैंड में स्थित निदेशक
बोर्ड को था। इस राज लेख द्वारा विधि बनाने का अधिकार भारत में स्थित
कोलकाता, मुंबई, और चेन्नई प्रेसीडेंसी के राज्यपाल और उसकी परिषद को दे
दिया गया।
कंपनी के कर्मचारी 1726 के राज लेख के बाद
निरंकुश हो गए, और हर तरीके से धन कमाने का प्रयास करने लगे और भ्रष्टाचार
अपनी चरम सीमा तक पहुंच गया। जिस पर लगाम लगाने के लिए रेगुलेटिंग एक्ट
1773 में कंपनी द्वारा लाया गया।
रेगुलेटिंग एक्ट 1773 :--
भारतीय व्यापार में व्याप्त भ्रष्टाचार और अनियमितता पर रिपोर्ट देने के
लिए तत्कालीन प्रधानमंत्री लॉर्ड नार्थ द्वारा 1772 में एक गुप्त संसदीय
समिति का गठन किया। जिसने 1773 में अपना प्रतिवेदन प्रस्तुत किया इस
प्रतिवेदन के आधार पर रेगुलेटिंग एक्ट पारित किया गया।
इस एक्ट की मुख्य विशेषताएं निम्न थी
1)
1726 के एक्ट की तरह इसका उद्देश्य सत्ता हस्तांतरित करना नहीं था। अपितु
कंपनी की भारत में कार्यप्रणाली पर ब्रिटिश संसद का नियंत्रण स्थापित करना
था।
2) 1773 के रेगुलेटिंग एक्ट को भारत में कंपनी शासन के लिए
प्रथम बार लिखित संविधान के रूप में माना जा सकता है यह ब्रिटिश संसदीय
नियंत्रण की शुरुआत थी।
3) बंगाल प्रेसीडेंसी के अधीन मद्रास और
मुंबई प्रेसिडेंसी कर दिया गया। बंगाल के गवर्नर को गवर्नर जनरल पद नाम दे
दिया गया, प्रथम गवर्नर जनरल वारेन हेस्टिंग्स था।
4) समस्त भारत
के अंग्रेजी क्षेत्रों का शासन बंगाल के गवर्नर जनरल और उसके चार सदस्यीय
परिषद में केंद्रित किया गया, परिषद के निर्णय बहुमत से करने की व्यवस्था
थी।
5) कोलकाता में उच्चतम न्यायालय की स्थापना इस अधिनियम द्वारा
1774 ईस्वी में की गई। इस न्यायालय को दीवानी, फौजदारी, जल सेना, और
धार्मिक मामलों में अधिकतम अधिकार दिया गया, साथ ही यह एक अभिलेख न्यायालय
भी था। इस न्यायालय में निर्णय के विरुद्ध इंग्लैंड स्थित प्रिवी काउंसिल
में अपील की व्यवस्था भी की गई थी।
6) इस उच्चतम न्यायालय में एक
मुख्य न्यायाधीश और तीन अपर न्यायाधीश होते थे सर एलिजा इंपे इस न्यायालय
के प्रथम मुख्य न्यायाधीश तथा चेंबर्स, हाइड और लेमिंस्टर अपर न्यायाधीश
नियुक्त हुए।
7) कंपनी के संचालक मंडल के सदस्यों की संख्या 24
थी, और कार्यकाल 4 वर्ष। भारत से वापसी के 2 वर्ष के बाद ही कोई व्यक्ति
संचालक मंडल का सदस्य बन सकता था।
8) अंग्रेजी क्षेत्रों के प्रशासन के लिए, गवर्नर जनरल और उसकी परिषद को नियम अध्यादेश बनाने का अधिकार दिया गया।
एक्ट आफ सेटेलमेंट 1781 ;--
1) रेगुलेटिंग एक्ट की कमियों को दूर करने के लिए इस एक्ट को पारित किया गया था।
2)
इस एक्ट के अधीन गवर्नर जनरल और उसकी परिषद को कोलकाता, मुंबई, और मद्रास,
प्रेसीडेंसी के अलावा बंगाल, बिहार, और उड़ीसा के दीवानी क्षेत्रों के
लिए कानून बनाने का अधिकार प्राप्त हुआ था।
पिट्स इंडिया एक्ट 1784 ;--
रेगुलेटिंग
एक्ट की कमियों, और ईस्ट इंडिया कंपनी के कर्मचारियों में बढ़ते
भ्रष्टाचार, गिरते अनुशासन, कुशासन के विरुद्ध यह एक्ट पास किया गया इसकी
विशेषताएं निम्न थी:-
1) कंपनी शासन के राजनीतिक दायित्व का भार 6 सदस्य नियंत्रण मंडल को सौंप दिया गया।
2) नियंत्रण मंडल को भारत में कंपनी की गतिविधियों, आदेशों, निर्देशों को मान्य या अमान्य करने का अधिकार प्राप्त था।
3)
गवर्नर जनरल के परिषद की संख्या 4 से 3 कर दी गई और युद्ध, संधि, राजस्व,
सैन्य शक्ति, देसी रियासतों, आदि के नियंत्रण और अधीक्षण का अधिकार दिया
गया।
4) इस अधिनियम द्वारा भारतीय प्रदेशों को ब्रिटिश अधिकृत भारतीय प्रदेश से संबोधित किया गया।
5)
प्रांतीय शासन को केंद्रीय आदेशों का पालन करना अनिवार्य कर दिया गया।
अन्यथा प्रांतीय शासन को बर्खास्त करने का अधिकार गवर्नर जनरल और उसकी
परिषद को था।
6) कंपनी के कर्मचारियों को उपहार लेने पर
प्रतिबंध लगाया गया। साथ ही गलत आचरण के लिए मुकदमा चलाने के लिए इंग्लैंड
में विशेष कोर्ट की स्थापना भी की गई।
1786 का अधिनियम :--
इस अधिनियम द्वारा गवर्नर जनरल की शक्तियों में वृद्धि की गई, गवर्नर जनरल
को विशेष परिस्थितियों में परिषद के निर्णय को रद्द करने तथा अपने निर्णय
को लागू करने का अधिकार प्राप्त हुआ, गवर्नर जनरल को प्रधान सेनापति की
शक्तियां भी प्रदान कर दी गई।
1793 का राजलेख (The charter act of 1793). :-
यह अधिनियम भी कंपनी के क्रियाकलापों में सुधार के लिए पारित किया गया था।
1)
गवर्नर जनरल और उसके परिषद के लिए लिखित विधि द्वारा प्रशासन की
कार्यप्रणाली को सुनिश्चित किया गया, और इस कानून और विधियों की व्याख्या
का अधिकार न्यायालयों को दे दिया गया।
2) गवर्नर जनरल की परिषद का सदस्य होने के लिए 12 वर्षों का अनुभव अनिवार्य कर दिया गया।
3) परिषद के सदस्यों को भारतीय राजस्व से वेतन देने का प्रावधान किया गया।
1813 का राजलेख (The charter act of 1813) ;---
संपूर्ण भारतीय क्षेत्रों पर एकाधिकार जमाने के बाद अब अंग्रेज व्यापक
प्रशासनिक और विधिक फेरबदल करके, शोषण की रफ्तार को, और बढ़ाना चाहते थे,
जिसके लिए इस राज लेख में व्यापक प्रावधान किया। इस राजलेख मुख्य विशेषताएं
निम्न थी:-
(1) भारत से व्यापार करने का ईस्ट इंडिया कंपनी का
एकाधिकार समाप्त कर दिया गया। अब कोई भी ब्रिटिश नागरिक भारत से व्यापार
करने के लिए स्वतंत्र था।
(2) ईसाई मिशनरियों को भारत में धर्म प्रचार और धर्मांतरण की अनुमति इस राज लेख से प्राप्त हुई।
(3) स्थानी स्वायत्तशासी संस्थाओं को, करारोपण का अधिकार प्राप्त हुआ, और आय व्यय के लेखांकन का प्रावधान भी किया गया।
(4) कंपनी के व्यय पर अधिकतम 20,000 अंग्रेज सैनिक रखने की व्यवस्था हुई।
(5)
कंपनी के व्यापार एकाधिकार समाप्त करने के बदले, कंपनी को यह लाभ दिया
गया, वह आगामी 20 वर्षों के लिए भारतीय प्रदेशों तथा राजस्व पर नियंत्रण
बनाए रखें।
(6) भारतीयों की शिक्षा पर एक लाख वार्षिक धनराशि के व्यय करने का प्रावधान किया गया
1833 का राजलेख (The charter act of 1833) :-
वेलेजली की सहायक संधि से अंग्रेजों द्वारा नियंत्रित भारतीय क्षेत्रों
में व्यापक वृद्धि हुई। भारतीय क्षेत्रों को नियंत्रित करने और एकाधिकार
मजबूत करने के लिए, ब्रिटिश संसद में 1833 का राजलेख लाया जिसकी मुख्य
विशेषताएं निम्न थी
1) चाय और चीन के साथ कंपनी के व्यापारिक एकाधिकार को समाप्त कर दिया गया।
2) बंगाल के गवर्नर जनरल को समस्त भारत का गवर्नर जनरल बनाया गया, और प्रशासनिक व्यवस्था को केंद्रीकृत किया गया।
3) कंपनी के सैनिक, असैनिक, प्रशासनिक निरीक्षण, और नियंत्रण का अधिकार भारत के गवर्नर जनरल को सौंपा गया।
4) उपरोक्त प्रावधानों के अनुरूप संपूर्ण भारत के लिए कानून बनाने का अधिकार गवर्नर जनरल और उसकी परिषद को दिया गया।
5) गवर्नर जनरल की परिषद में चौथे सदस्य को विधि बनाने के लिए सम्मिलित किया गया। (कानून/विधि मंत्री)।
6) संपूर्ण देश के लिए एक बजट की व्यवस्था की गई समस्त अधिकार गवर्नर जनरल और उसकी परिषद को सौंपा गया।
7) भारत में दास प्रथा को गैरकानूनी घोषित किया गया, जिसके फलस्वरूप 1843 में दास प्रथा के समाप्ति की घोषणा हुई।
8) भारत में संविधान निर्माण की पहली आंशिक झलक 1833 के चार्टर एक्ट में दिखाई देती है।
9) भारत में प्रचलित नियमों और प्रथाओं को आलेखित करने के लिए एक आयोग का गठन हुआ, जिसके अध्यक्ष लॉर्ड मैकाले थे।
1853 का राजलेख (The charter act of 1853)
1853 का चार्टर एक्ट अंतिम चार्टर एक्ट था। इस एक्ट ने भारतीय प्रशासनिक
व्यवस्था में व्यापक बदलाव किया, और अपना प्रभाव लंबे समय तक शासन व्यवस्था
पर डाला।
डलहौजी की हड़प नीति या डॉक्ट्रिन ऑफ़ लैप्स
के अंतर्गत, कई राज्य अंग्रेजी क्षेत्रों में मिला लिए गए, और उन राज्यों
के विरोध के कारण अंग्रेजों ने कुछ कठोर प्रशासनिक, और नीतिगत निर्णय लिए
जिससे इन राज्यों के असंतोष को दबाया जा सके, इस राजलेख के प्रमुख प्रावधान
निम्न थे
1) कंपनी के अधीन कर्मचारियों की नियुक्ति के लिए प्रतियोगिता परीक्षा अनिवार्य कर दी गई।
2) विधि सदस्य के अस्थाई पद को गवर्नर जनरल की कार्यकारी परिषद में स्थाई कर दिया गया।
3) विधायी और प्रशासनिक कार्यों को अलग किया गया।
4) ब्रिटिश संसद को अधिकार दिया गया कि, वह भारतीय क्षेत्रों पर कंपनी के शासन को समाप्त कर सके।
[ 2 ] ब्रिटिश पार्लियामेंट के अधीन संवैधानिक सुधार
अब तक के संवैधानिक विकास में, जहां ब्रिटिश पार्लियामेंट अप्रत्यक्ष रूप
से कंपनी शासन को नियंत्रित करने का प्रयास कर रही थी। उसने कंपनी शासन को
समाप्त करके प्रत्यक्ष रूप से भारतीय शासन की बागडोर अपने हाथों में ले ली।
1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम ने कंपनी प्रशासन के भ्रष्टाचार, लूट,
और प्रशासनिक अक्षमता, की पोल खोल कर रख दी थी। इस विद्रोह ने अंग्रेजों को
इस तथ्य का भान करा दिया था कि तलवार के बल पर जीते गए भारतीय प्रदेशों पर
तलवार के दम पर अधिक समय तक शासन(शोषण) करना संभव नहीं है।
प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के बाद ब्रिटिश संसद ने प्रशासनिक व्यवस्था में
व्यापक परिवर्तन किया, अप्रैल माह में ब्रिटिश संसद में प्रस्ताव स्वीकृत
किया। इस प्रस्ताव के माध्यम से भारत में उत्तरदाई शासन की स्थापना के लिए
विधेयक लाया गया जिसे 2 अगस्त 1958 को स्वीकृत और लागू किया गया।
इस चरण में अगला कदम महारानी विक्टोरिया की घोषणा थी। ब्रिटिश संसद में स्वीकृत अधिनियम की विशेषताएं निम्न थी
1)
भारत में कंपनी के समस्त अधिकारों को समाप्त करके महारानी की ओर से शासन
करने के लिए भारत राज्य सचिव (Secretary of state for India) के पद का सृजन
किया गया ।
2) भारत राज्य सचिव की सहायता और सलाह के लिए
15 सदस्यों की भारत परिषद का गठन हुआ। जिसमें 8 सदस्य ब्रिटिश सरकार की ओर
से और 7 सदस्य कंपनी के द्वारा नियुक्त किए गए।
3) कंपनी की सेना आफ ब्रिटिश क्रॉउन की सेना बन गई।
4)
भारत के राज्य सचिव को ब्रिटिश संसद के समक्ष, भारत के बजट को प्रति वर्ष
प्रस्तुत करने का दायित्व दिया गया। लॉर्ड स्टेनली को पहला भारत राज्य सचिव
बनाया गया।
5) भारत के गवर्नर जनरल के पद नाम को बदलकर वायसराय कर दिया गया। लॉर्ड कैनिंग पहले वायसराय थे।
1857 की स्वतंत्रता संग्राम के बाद व्यापक प्रशासनिक फेरबदल के अलावा
भारतीयों को विश्वास में लेने का प्रयास अंग्रेजी शासन द्वारा किया गया
इसके लिए 1 नवंबर 1858 को लॉर्ड कैनिंग ने (वर्तमान प्रयागराज) में रानी
विक्टोरिया का घोषणा पत्र पढ़ा, और शाही दरबार लगाया। इस प्रकार इलाहाबाद 1
दिन के लिए देश की अघोषित राजधानी बन गई।
इस घोषणा पत्र के महत्वपूर्ण तथ्य निम्न थे।
1)
घोषणा पत्र के अनुसार, प्रत्येक व्यक्ति जाति और धर्म के भेदभाव के बिना,
केवल अपनी योग्यता और शिक्षा के आधार पर लोक सेवा में प्रवेश पाने का
अधिकारी होगा।
2) भारतीय प्रजा को भी ब्रिटिश प्रजा के समान अधिकार दिए जाएंगे।
3) भारतीय लोगों के प्राचीन अधिकारों परंपराओं आदि के सम्मान और न्याय, सद्भाव व धार्मिक सहिष्णुता का पालन किया जाएगा।
भारत परिषद अधिनियम 1861( Indian councils act) ;----
1858 की महारानी विक्टोरिया की घोषणा के बाद, शासन में सुधारों की
अतिशीघ्र आवश्यकता महसूस की जा रही थी। साथ ही भारतीय असंतोष, जो अंग्रेजी
शासन के प्रति उत्पन्न हुआ था, उसे संतुलित करने के लिए नए सुधारों की
आवश्यकता थी। भारतीय जनमानस में विश्वास उत्पन्न करने के लिए इस अधिनियम
द्वारा, दो महत्वपूर्ण कार्य किए गए पहला भारतीय प्रतिनिधियों को विधायी
कार्य से जोड़ना और दूसरा विधायी शक्तियां जो अब तक केंद्रीकृत थी, का
विकेंद्रीकरण करना। अधिनियम की मुख्य विशेषताएं निम्न थी।
1) गवर्नर जनरल को नए प्रांतों के निर्माण और उस प्रांत के प्रमुखों की नियुक्ति का अधिकार दिया गया।
2) केंद्रीय सरकार को प्रांतीय सरकारों की तुलना में अधिक अधिकार दिए गए।
3)
गवर्नर जनरल और उसकी संस्था, कानून का निर्माण करने वाली संस्था बन गई, और
उसे संपूर्ण देश के लिए कानून बनाने का अधिकार प्राप्त हो गया।
4) नियम बनाने के अधिकार के तहत परिषद में विभागीय प्रणाली (port folio system)की शुरुआत लॉर्ड कैनिंग ने की।
5) गवर्नर जनरल को अध्यादेश जारी करने का अधिकार प्राप्त हुआ, और यह अध्यादेश 6 माह तक व्यवहारिक रहता था।
6)
इस अधिनियम के तहत 1862 ईस्वी में गवर्नर जनरल लॉर्ड कैनिंग ने नवगठित
विधान परिषद में तीन भारतीयों को नियुक्त किया 1 पटियाला के महाराज 2. बनारस के राजा 3. सर दिनकर राव
इसके बाद ब्रिटिश संसद
ने 1865 का अधिनियम पारित किया। जिसके अनुसार गवर्नर जनरल के विधायी
अधिकारों में वृद्धि हुई और उसे प्रांतों की सीमाओं का निर्धारण करने का
अधिकार प्राप्त हुआ
1869 में आए अधिनियम से गवर्नर जनरल को अप्रवासी भारतीयों के संबंध में कानून बनाने का अधिकार मिला।
1873 के अधिनियम के प्रावधान के अनुसार 1 जनवरी 1874 को ईस्ट इंडिया कंपनी को औपचारिक रूप से भंग कर दिया गया।
शाही उपाधि अधिनियम 1876 के प्रावधानों के अनुसार, गवर्नर जनरल की परिषद
में लोक निर्माण विभाग जोड़ा गया, और 28 अप्रैल 1876 मे महारानी
विक्टोरिया को भारत की शासिका घोषित किया गया, इस प्रकार औपचारिक रूप से
भारत का ब्रिटिश सरकार को हस्तांतरण किया गया।
Labels: History, Indian History, Notes for students




1 Comments:
Nice information on history. Do you need a tutor?
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