सिंन्धु घाटी सभ्यता

चलिए बात करते हमारे देश में सभ्यता के विकास की किस प्रकार पाषण युग के बाद जब खाना बदोश ज़िदगी से मनुष्य ने स्थायी तौर पर बसना शुरू किया और फिर शुरू हुआ विश्व की बड़ी
सभ्यता के विकास की कहानी । और पुरी दुनियां जाना एक सभ्यता के बारे में जिसे सिंन्धु घाटी सभ्यता कहते हैं। पहले जानते हैं ’’सभ्यता’’ से क्या तात्पर्य है ?

क्या अर्थ है सभ्यता का

संसार के किसी हिस्से में किसी खास समय पर विकसित जीवन शैली को सभ्यता कहते हैं । समाज में प्रचलित सभ्यता की निम्न लिखित विशेषताएं होती है?
  • सबसे पहले किसी कस्बे या शहर का निर्माण होता है। और लोग वहां बसते हैं । 
  • संगठित पेशा जैसे कृषि इत्यादि का विकास होता है।
  • cities में संगठित प्रशासनिक व्यवस्था होती है, धार्मिक और राजनैतिक संगठन भी होता है।
  • भाषा या लिपि का प्रचलन होता है।
  • मजदूर वितरण प्रणालि तथा सांकृतिक अभिव्यक्ति होती है।
इस लिहाज से भारत में 2500 से 1500 ई.पू. सिंन्धु नदी के किनारे एक सभ्यता विकसित हुई थी जिसे सिन्धु घाटी की सभ्यता के नाम से हम आज जानते हैं । कल्पना करें आज के विश्व के अनेक सभ्य देशों में लोग जंगली जीवन यापन कर रहे थे उस दौर में हमारे देश में लोग व्यवस्थित जीवन जीने के आदी हो चुके थे । उनके मकान, घर और रहन-सहन आज की ही तरह के थे ये बात आज से 4500 साल पहले की है । आईए जाने क्या होता था उस समय? लोग किस प्रकार के घरों एवं सामाजिक व्यवस्था में रहा करते थे । मगर सबसे पहले ये जानते हैं कि इसका पता आधुनिक समय में कैसे चला।

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एक सभ्यता विकसित हुई और खत्म हुई 1500 ई.पू. में 

 

फिर 1920-22 के दरम्यान हमे पता चला कि सिन्धु नदी के किनारे कोई पूर्ण विकसित शहर था।
भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग के महानिदेशक सर जाॅन मार्शल के निर्देश पर दयाराम साहनी ने पाकिस्तान के शाहीवाली में रावी नदी के वायें तट पर स्थित हड़प्पा टीले का उत्खनन करवाया ।

1922 में रखाल दास बेनर्जी ने सिन्ध प्रान्त के लरकाना जिले में सिन्धु नदी के दाहिने तट पर स्ािित मोहनजोदड़ों का उत्खनन करवाया । मोहन जोदाड़ो के टीले का उत्खनन 1922 से 1930 तक हरग्रीब्ज, सनाउललाह, के.एन.दीक्षित एवं जान मार्षल ने विस्तृत पैमाने पर किया  तो एक पूर्ण विकसित सभ्यता का  पता चला 

हड़प्पा नामक पुरानी जगह पर ज्ञात होने के कारण इसे  हम हड़प्पा सभ्यता कहते हैं और ठीक उसी प्रकार सिंध नदी के इलाके खुदाई की गई तो उसमें हमें एक और सभ्यता का पता चला जिसे मोहेन जोदाड़ो की सभ्यता कहा जाता है जिस पर फिल्म भी बन चुकी है।
ये दोनों की इलाके वर्तमान में पाकिस्तान में आते हैं हांलाकि इनका कुछ हिस्सा अभी भी भारत में हैं।
इस पूरी खुदाई में मिले अवशेष ये बताते हैं कि भारत एक पूर्ण विकसित देश था जो काफी समय तक संसार में जिसे अल्प विकसित देश मानता था।

कहां कहा की गई खुदाई और क्या मिले

हड़प्पा -रावी नदी पर 1921 दयाराम सहानी द्वारा खुदाई की गई जो मोंटगोमरी (पाकिस्तान) में स्थित है।
मोहेन जोदाड़ो और कोटदीजो -सिन्धु नदी पर रखाल दास बैनर्जी ने लरकाना सिन्ध (प्रांत जो पाकिस्तान में है) खुदाई करवायी।
चन्हूदड़ो- सिन्धु नदी पर 1931 में अर्नेस्ट मैके खुदाई हुई
लोथल -भगवा नदी पर
बनबाली - सरस्वती नदी पर 1973 में आर. एस विष्ट ने करवाया
रंगपुर - भादर नदी पर स्थित है । इसकी खुदाई 1934 में माधेस्वरूप वत्स द्वारा अहमदाबाद में की गई ।
सुत्काकोह- शादी कौर नदी
कोटदीजी की खुदाई 1935 में फजल अहमद द्वारा हुई जो सिन्ध (पाकिस्तान)में स्थित है।
धौलीबीरा की खुदाई 1967-68 में आर.एस.विष्ट द्वारा हुई । यह कच्छ गुजरात में हैं


शानदार टाउन प्लानिंगः-

आज के आधुनिक शहर में अगर बेहतरीन शहर की कल्पना करते है तो हमें मिलती है ंचैड़ी सड़के जो किसी चैराहे पर एक दूसरे को आपसे में सुनियोजित ढंग से काटती हो, और पैदल चलने वालों के लिए फुटपाथ बने हों।  यह 2600 1900 ई.पू. सिंधु घाटी सभ्यता में दिखाई थी। इतना ही नहीं सड़को पर एक निष्चित दूरी पर लैम्प पोस्ट बने हुए थे जो रात में लोगों को रौषनी देने का काम करते थे। शहर की नालियांे की उम्दा व्यवस्था थी । खुदाई में मिले नगरी अवषेषों को देखने से यही पता चलता है कि मोहन जोदड़ो, लोथल जैसे दूसरे शहरों में शानदार नालियांे की व्यवस्था थी। घरों से पानी निकासी के लिए बनी नालियां मुख्य नालियों से जुड़ी हुई होती थीं।और मुख्य नालियां प्रमुख मार्गो के अंदर से होती हुई जाती थीं । इतना ही नहीं जगह-जगह मेनहोल बनाए गए थे जिससे बहाव की निगरानी हो सके।
इन जगहों की पानी निकासी के लिए उम्दा नालियों की व्यवस्था थी जो आज के आधुनिक शहरों में भी देखने को नहीं मिलती है। शायद इसीलिए बारिष के दिनों में जल भराव बड़े शहरों में आज आम बात हो गई है मगर लोथल और मोहन जोदाड़ों के शहरों में ऐसा शायद नहीं देखा गया । ये सभी ये दर्षाते हैं कि पूरा शहर की जो सिविल व्यवस्था काफी लाजवाब थी।

मकान

खुदाई में मिले भवनों के अवषेषों के अध्ययन से भवनों को इतिहास कारों ने तीन श्रेणियों में बांटा है
पहली श्रेणी में ऐसे मकान आते थे जो आकार में काफी बड़े होते थे।
दूसरे श्रेणी में सार्वजनिक स्नानागार यानि स्वीमिंग पूल
तीसरे श्रेणी में ऐसे भवन आते थे जो लोगों के रहने के लिए बनाए जाते थे। ये सभी पक्की ईटों से बने होते थे। मजेदार बात तो यह है कि ये दोमंजिले मकान हुआ करते थे। 
मोहन जोदाड़ों और हड्प्पा के शहरों को दो हिस्सों मंे इतिहासकारों ने बांटा है
पहले हिस्से में बसे शहर को उचे स्थाने में बसाया गया था जिन्हें इनकी बनावट देखकर दुर्ग या नगर कोट कहा जा सकता है । 
तो दूसरा हिस्सा शहर को जो होता था वह निचले इलाके में बसाया जाता था।
ऊँचे स्थानों में बसे शहर में भोजन के अनाज गृह, असेम्बली हाॅल , और फैक्टरी वगैरह थी
गोदाम की बात कहें तो खुदाई में एक बड़ा गोदाम मिला है जिसकी लम्बाई 46 मीटर है तो चैड़ाई 15 मीटर है । इसकी बनावट और मिले अवषषों से तो पता यही चलता है कि यह अनाजों को रखने के लिए रखा गया था।
वहीं विषाल स्नानागार की 11.7 से 6.9 मीटर लम्बाई चैड़ाई थी । तो इसकी गहराई 2.4 मीटर थी। सम्भवतः इसका उपयोग किसी धार्मिक आयोजनों में किया जाता था।
और एक सभागार भी मिला है जिसकी चैड़ाई और लम्बाई 25 मीटर थी । इस हाॅल में 20 बड़े खम्बे मिले है। ये सभी खम्बें चार चार की श्रेणियों मंे बने हुए थे। इसमंे सम्भवतः शासक वर्ग बैठक किया करते थे। 

भवन निर्माण से जुड़ी कुछ अहम पहलु


कालीबंगा में मकान 30X15 X7.5 सेमी आकार वाली कच्ची ईटों के बने हुए थे तथा पक्की ईटों का प्रयोग केवल नालियों कुओं तथा दहलीज के लिए किया जाता था।
सैंन्धव सभ्यता में प्रत्येक मकान के मध्य एक आंगन होता था।
घरों के दरवाजे मुख्य सड़क में न खुलकर पिछवाड़े की ओर ली में खुलते थे।
लोथल,रंगपुर तथा कालीबंगा में भवन निर्माण में कच्ची ईटे प्रयुक्त हुई हैं ।
हड़प्पा और मोहन जोदाड़ों के टीलों के उत्खनन के दौरान श्रमिक आवासों के साक्ष्य मिले हैं । वहीं दूसरी तरफ मोहन जोदड़ों के एक स्थल पर सड़क के बीच कुम्हारों का आँवा मिला है।

 

लोथल में बंदरगाह भी मिला है जिससे यह पता उनका व्यापार दूर देषों से होता था। प्राप्त अवषेषों के आधार पर यह पता चलता है इनका व्यापार दूर-दूर तक फैला हुआ था।

जानते हैं क्या आयात होता था यहाँ

सोना अफगानिस्तान, कर्नाटक फारस से लाया जात था।
वहीं चाँदी अफगानिस्तान, ईरान से मंगायी जाती थी।
फिरोजा ईरान और अफगानिस्तान से मंगाया जाता था
टिन मध्य एषिया,अफगानिस्तान से मिलता था । गोमेद सौराष्ट्र गुजरात में पाया जाता था।
सीमा दक्षिण भारत राजस्थान अफगानिस्तान ,ईरान से प्राप्त होता था ।
देवदार,षिलाजीत हिमालय से प्राप्त होता था।
स्टीएटाईट से बनी 19 सेमी लम्बी पुरूष की की खण्डित मूर्ति प्राप्त हुई हो । इसकी आँखें सुषुप्तावस्था में है तथा होंठ मोटे हैं । सैंधव सभ्यता में धातुमूतियाँ मोहन-जोदड़ो, चन्हूदड़ी लोथल एवं कालीबंगा से प्राप्त हुई है ये मूतियाँ कांसे एवं ताबंे की धातुओं से बनी हुई हैं।
वहीं चन्हूदड़ों नामक स्थान से प्राप्त बैलगाड़ी व एक्कागाड़ी प्रमुख आकर्षण हैं । इसी प्रकार कालीबंगा से प्राप्त बैल की मूर्ति,लोथल से प्राप्त बैल,कुत्ता, खरगोष और पक्षियों की मूर्तियां सैंधव जनों की धातुकला ज्ञान का उदाहरण है।
मुहरें चर्ट,गोमेद और मिट्टी की बनी होती थीं । मुहरांे पर किसी पशु का अंकन और संक्षिप्त मुद्रालेख उत्कीर्ण मिलता है।

इसके अलावा खुदाई में मिले सिक्के और अनेक प्रकार बर्तन मिले हैं जिसपर खूबसूरत नक्काशी की गई है। जो खुदाई में सिक्के मिले वे मिट्टी और तांबे से बने हुए थे।
इन सिक्कों के अध्ययन से यह पता चलता है सिन्धु सभ्यता के लोगों धर्मिक रीति रिवाज और रहन सहन का पता चलता है। जैसे मोहन जोदाड़ों से प्राप्त एक मुद्रा में पशुपति या षिव की मुद्रा गड़ी मिली और कुछ अंकित लिपियां मिली है।
 अपठ्य है सैन्धव लिपि

एक बड़ा दुर्भाग्य  यह है कि सिन्धु घाटी सभ्यता के दौरान प्रयोग की जाने वाली लिपि को अभी तक समझा नहीं जा सका है। कहते है अगर यह समझ में आ गई तो इस सभ्यता से जुड़े कई राज खुल जाएंगे । इतिहासकार और पुरातत्व शात्री इस दिशा में निरंतर प्रयत्नशील हैं । इतना ही पता चल पाया है कि उनकी लिपि चित्रात्मक होती थी और इतिहासकार बी.बी. लाल का कहना है कि यह दाएं से बायीं ओर लिखी जाती थी। सभी मुद्राएं चैकोन,गोल तथा अंडाकार में मिली है। सभी प्राप्त मुद्राएं चैकोन,गोल तथा अंडाकार में मिली है। ऐसा प्रतीत होता है कि इन मुद्राओं का प्रयोग व्यापारिक क्रिया कलापों में बाहर भेजी जाने वाली गाँठों पर छाप लगाने के लिए किया जाता रहा होगा।
प्राप्त मुर्तियांे के अध्ययन  से पता चलता है उस वक्त लोगों का पहनावा कैसे था। महिला और पुरूष किस प्रकार के कपड़े पहनते थे।
 खुदाई में 2000 प्रकार के मुद्राएं प्राप्त हुई हैं ।

सभ्यता का अंतः

सवाल यह उठता है कि इतनी उन्नत सभ्यता खत्म कैसे हो गई । इस संबंध में इतिहासकारों में अलग-अलग मत है।
कुछ यह मानते हैं प्राकृतिक आपदा जैसे  बाढ़ या भूकंप इत्यादि से खत्म हो गई होगी।
तो कुछ यह मानते हैं कि महामारी, विदेषी आक्रमणों के कारण या सिन्धु नदी द्वारा दिषा बदलने के कारण सम्भवतः ये सभ्यता खत्म हुई हागी।
कारण जो भी मगर इस सभ्यता ने विष्व इतिहास को एक प्रचीन सभ्यता से परिचय करा दिया ।

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