आरम्भिक काल (1600 -1650 ) सर थॉमस रो 1619 में अपने देश लौट गया ,
इस समय सूरत, भड़ौच , आगरा एवम अहमदाबाद में
अंग्रेजों की व्यापारिक बस्तियां स्थापित हो चुकी थीं / अपनी इस सफलता से
उत्साहित होकर कंपनी ने अपने व्यापार को और अधिक विस्तृत करने का निर्णय लिया /
उन्होंने मछलीपत्तनम से 230 मील दूर एक छोटे से भूभाग पर एक कारखाना बना लिया / जिसका नाम था फोर्ट सैंट जोर्ज़ / जो
बाद में मद्रास के नाम से प्रसिद्ध हुआ / 16 42 में यही कंपनी का केंद्र बन गया /
1650 में हुगली में भी व्यापारिक केंद्र स्थापित किये गए /
Saint George fort |
इस ब्लॉग का उद्येश यह है कि किस तरह भारत में अलग अलग यूरोपियों ने
अपना अधिपत्य ज़माने की कोशिश की और कौन-कौन से वे योरोपियन जातियां थी जो अपने पैर
जमाये /
वे सभी यहाँ शुरू शुरू में व्यापार के इरादे से यहाँ आये थे मगर भारत
की आन्तरिक स्तिथि को देखते हुए अपना कब्ज़ा जमाना शुरू कर दिया /
क्या हुआ ?
अब आपको सीधे शुरुआत से मै जानकारी देता हूँ / 1498 में यूरोप से
समुद्री मार्ग की खोज की तो
यूरोपियन को एक बाज़ार की आस नज़र आई क्योकिं दक्षिण पूर्वी एशिया में
प्रचुर मात्रा में उन्हें अपने उत्पाद को
बेचने का बाज़ार मिल गया /
इसके पीछे भी कारण है ?
दरअसल ! वेनिस और जिनेवा का एशिया के व्यापार
पर एकाधिकार था और वे पुर्तगालियों तथा
स्पेनिश को अलग रखा करते थे / यही कारण है पुर्तगालियों को नए व्यापारिक संबध
बनाने के लिए नए मार्गो की तलाश करना ज़रूरी हो गया नतीजा यह हुआ कि 1492
स्पेन का नाविक कोलम्बस अमेरिका पंहुचा और पुर्तगाली नाविक वास्को डिगामा 1498 में भारत (कालीकट) पंहुचा /
हम अब भारत में यूरोपियों के आगमन की बात करते है /
ये तो तय है कि भारत में पहले कदम रखने वाले यूरोपीय और कोई नही
पुर्तगाली ही थे
पुर्तगाली :- 1498 में वास्को डिगामा ने राजा जमोरिन [कालीकट की जमोरिन भारत के मलाबार तट पर कोझिकोड कालीकट राज्य का वंशानुगत सम्राट था। यह क्षेत्र भारत के प्रमुख व्यापारिक केन्द्रों में से एक था। ]से व्यापार करने
की अनुमति मांगी मगर इस निवेदन के साथ कि किसी अन्य को कालीकट में व्यापार करने की
अनुमति नही दी जाय / उस वक्त भारत में अरब के व्यापारियों का बोल बाला था / फिर
अलबुकर्क 1505 में बतौर पुर्तगाली गवर्नर भारत में व्यापार बढाया फिर 1509 में
गोवा, दमन और दीव में व्यापारिक केंद्र बनाए / कोचीन में तो पहले से ही पुर्तगाली
व्यापारिक केंद्र था ही/ व्यापार फ़्रांस की खाड़ी से इंडोनेशिया तक फ़ैल गया /
ब्रिटिश राज |
पतन:-
पुर्तगालियों के पतन का कारण स्वयं पुर्तगाली ही थे / पुर्तगालियों
के साथ एक बात और भी जुडी थी वो यह कि वे व्यापार के साथ –साथ इसाई धर्म प्रचार भी
किया करते थे और मुसलमानों के कट्टर विरोधी थे / वे हिन्दू और मुसलमानों को बल पूर्वक इसाई
बनाने का प्रयास करने लगे /
पुर्तगाली ने अपनी जनसँख्या में वृद्धि करने के लिए भारतीय स्त्रियों
के साथ व्यभिचार करना शुरू कर दिया और इसकी अनुमति व्यापारियों को उनके गवर्नर ने
ही दी थी जिससे पुर्तगालियों की लोकप्रियता
कम होने लगी / इसके आलावा, पुर्तगाली अधिकारी व्यापारिक गति विधियों के साथ –साथ
अन्य गतिविधियों में भी हिस्सा लेने लगे थे
जिस का परिणाम यह हुआ कि व्यापारिक पकड कम होने लगी /
इसे भी पढ़िए तराईन की लड़ाई
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सन 1580 में पुर्तगाल स्पेन से युद्ध हार गया जिसका सीधा प्रभाव
भारतीय व्यापार पर भी पड़ा /और पुर्तगाली अब ब्राजील की तरफ ध्यान देने लग गए
क्योंकि ब्राजील की खोज ने उन्हें एक नया बाज़ार दे दिया , अब वे ब्राजील में अपना
व्यापार स्थापित करने में लग गए लिहाजा भारत में उनका ध्यान कम होने लगा /इसके
आलावा भारत में मराठा शक्ति भी पुर्तगालियों के रहे सहे ठिकानो पर कब्ज़ा करने लगी
और पुर्तगालियों के पास भारत छोड़ने के आलावा कोई विल्कप नही बचा
फांसीसी 1664 में भारत आए उनका उद्देष्य भी व्यापार करना ही था। सबसे पहले फांसीसियों ने 1668 में सूरत में अपना व्यापारिक केन्द्र बनाया और फिर 1669 में मछलीपट्टनम मे एक फैक्ट्री की नींव रखी । 1673 में बंगाल के मुगल सूबेदार ने चंदर नगर नामक एक टाउन बसाने की अनुमति दे दी।
1674 में फ्रंासीसियों ने बीजापुर के सुल्तान से पांडेचेरी नामक गांव हासिल कर वहां से अपना पूरा करोबार चलाया । 1741 तक फां्रसीसी के व्यापार ही करते रहे और जोसेफ फ्रेन्कोइस डूप्ल्ेक्स के फ्रेच ईस्ट इंडिया कम्पनी के गर्वनर बनने के बाद फ्रंासीसियों के इरादा यहां भारत में कब्जा जमाने का होने लगा । डॅप्ले बहुत ही चालाक गर्वनर था उसने यहां के राजाओं की आपसी दुष्मनी का भरपूर फायदा उठाना शुरू कर दिया । अपनी चालाकी से भारतीय राजनीति में उसकी काफी अच्छी पकड़ बना ली थी।
उसके मार्ग पर के अंग्रेज रोड़ा बनकर उभरे । हैदराबाद और कैप कमेरियन में कब्जा करने के बाद फांसीसियों के इरादे काफी बढ़ने लगे। और फिर अपनी प्रभुता बताने के लिए अंग्रेज और फांसिसियों का झगड़ शुरू हो गया। 1744 में अंग्रेज गर्वनर क्लाईव और डूप्ले की सेना का आमाना सामना हुआ। और डूप्ले को पराजय का सामना करना पड़ा। इसके बाद 1754 में डूप्ले को वापस बुला लिया गया । और फांसीसी हलचल भारत से खत्म हो गया।
फांसीसी हलचल
फांसीसी 1664 में भारत आए उनका उद्देष्य भी व्यापार करना ही था। सबसे पहले फांसीसियों ने 1668 में सूरत में अपना व्यापारिक केन्द्र बनाया और फिर 1669 में मछलीपट्टनम मे एक फैक्ट्री की नींव रखी । 1673 में बंगाल के मुगल सूबेदार ने चंदर नगर नामक एक टाउन बसाने की अनुमति दे दी।
1674 में फ्रंासीसियों ने बीजापुर के सुल्तान से पांडेचेरी नामक गांव हासिल कर वहां से अपना पूरा करोबार चलाया । 1741 तक फां्रसीसी के व्यापार ही करते रहे और जोसेफ फ्रेन्कोइस डूप्ल्ेक्स के फ्रेच ईस्ट इंडिया कम्पनी के गर्वनर बनने के बाद फ्रंासीसियों के इरादा यहां भारत में कब्जा जमाने का होने लगा । डॅप्ले बहुत ही चालाक गर्वनर था उसने यहां के राजाओं की आपसी दुष्मनी का भरपूर फायदा उठाना शुरू कर दिया । अपनी चालाकी से भारतीय राजनीति में उसकी काफी अच्छी पकड़ बना ली थी।
उसके मार्ग पर के अंग्रेज रोड़ा बनकर उभरे । हैदराबाद और कैप कमेरियन में कब्जा करने के बाद फांसीसियों के इरादे काफी बढ़ने लगे। और फिर अपनी प्रभुता बताने के लिए अंग्रेज और फांसिसियों का झगड़ शुरू हो गया। 1744 में अंग्रेज गर्वनर क्लाईव और डूप्ले की सेना का आमाना सामना हुआ। और डूप्ले को पराजय का सामना करना पड़ा। इसके बाद 1754 में डूप्ले को वापस बुला लिया गया । और फांसीसी हलचल भारत से खत्म हो गया।
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