What is Leap Year?

सीबीएसई की क्लास VI की एक किताब मै देख रहा था / उसमें पृथ्वी की गति और मौसम क्यों और कैसे प्रतिवर्ष बदलता है इसके बारे में विस्तार से बताया गया था / उसमे एक ख़ास बात ये लिखी थी कि प्रतिवर्ष क्यों फरवरी 28 दिन का होता है ? और चार वर्ष के बाद ही क्यों फरवरी का महिना 28 से 29 दिन का हो जाता है ?
पृथ्वी की गति (फोटो- गूगल) 

बहरहाल ! ये तो सभी जानते है की चार साल के बाद फरवरी का महिना 29 दिन का हो जाता है / और उस वर्ष को अधि-वर्ष यानि इंग्लिश में “लीप इयर” कहते है /

क्या है लीप ईअर ? क्यों फरवरी का महिना चार साल के बाद 29 दिनों का हो जाता है ? इसकी चर्चा करने के लिए ही मै ये ब्लॉग लिख रहा हूँ /

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कैलेंडर का इतिहास :-

इसके बारे में समझने से पहले हमें अपने कैलेंडर का इतिहास समझना पड़ेगा /
दरअसल ! हम आज जो कैलेंडर देख रहे है वो मूलतः रोमन कलेंडर है, मलतब ये कि इसका इजाद रोमन वासियों ने किया था /   और जब ये कलेंडर बना था तो उसमे जनवरी और फरवरी महीने का नामो निशान नही था , दुसरे शब्दों में हम समझें कि साल की शुरुआत मार्च से होती थी और दिसम्बर तक ही चलती थी / यानि 10 महीनो का ही साल होता था आज की तरह बारह महीनो का नही /
फरवरी में अधिवर्ष यानि लीप इयर (फोटो- गूगल) 
 और खास बात ये भी है कि  साल भर में केवल 304 दिन ही हुआ करते थे / फिर रोमन विद्वानों ने गणना की और काफी जाँच पड़ताल के बाद उन्हें महसूस होने लगा कि क्यों मौसम अपने नियत तिथि पर नही आ रहा है और फिर इसके बाद ही दो और महीनो का नामकरण (यानि जन्म हुआ )/ फिर बना एक “जनवरी” और “ फरवरी”, मगर ये 355 दिनों का हो रहा था जो विषम संख्या थी /

मौसम  और त्योहारों की गणना फिर गलत साबित हो रही थी / बाद में इन्होने सोचा मार्च में ज्यादा और फरवरी में दो दिन कम कर के देखते है ! देखा तो पाया की कुछ हद तक गणना सही आ रही है मगर हर चार साल के बाद फिर वही गलती हो रही थी/ फिर मार्च 31 और फरवरी  28 दिन का बन तो गया मगर चार साल का प्रॉब्लम बना ही रहा / अब क्या?

क्यों होता है चार साल बाद फरवरी का 29 दिन ?


फिर सोचा गया! वैज्ञानिक गणना की गई, और ये पाया गया की पृथ्वी पर होने वाले मौसम परिवर्तन में बहुत कुछ  जिम्मेदार पृथ्वी का सूर्य के चारों ओर घुमने से भी है / जो दरअसल में 365 दिन और 6 घंटे का होता है / यानि पृथ्वी सूर्य का पूरा एक चक्कर लगाने में 365 दिन और 6 घंटे लगाती है /

सुविधा के हिसाब से 6 घंटे को नज़र अंदाज़ कर दिया जाता था, फिर हुआ यूँ कि ये 6 घंटे का यह  अंतर चार साल में पुरे 24 घंटे का अंतर हो जाता था यानी एक पूरा दिन- इसीलिए हर चार साल में एक दिन को जोड़ना ज़रूरी हो गया और फिर ये एक्स्ट्रा एक दिन फरवरी के हिस्से में ही आया / इस तरह फरवरी में हर चार साल में 29 दिन होने लगे और इस एक दिन के उछाल को लीप इयर यानी अधि वर्ष कहा जाने लगा

अब आगे जो कलेंडर आने वाले है उनमे क्या बदलाव आएगा ये तो वक्त ही बताएगा  !

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