Dec 25, 2019

सूर्यग्रहण 2019


संयोग 296 वर्ष का 

गुरूवार  26 दिसंबर 2019 को खगोल विज्ञान का एक एतिहासिक दिन था। क्योंकि इस दिन जो सूर्य ग्रहण हुआ वह ज्योतिषियों के अनुसार यह दुर्लभ नजारा था क्योंकि ऐसा संयोग 296 वर्ष के बाद हो रहा था।यूॅ तो सूर्य ग्रहण और चंद्रगहण प्रतिवर्ष होता रहता है। खगोल विज्ञान इसे एक साधरण घटना ही मानती है। मगर ज्योतिषियों की माने तो यह संयोग पिछली बार 7 जनवरी 1723 को हुआ था तो जानते हैं क्या खास हुआ इस सूर्यग्रहण में। सबसे पहली बात तो यह है कि




  • इस सूर्यग्रहण में  सूर्य वलयकार था। 
  • चंद्रमा की छाया का सूर्य का 97 प्रतिशत हिस्सा ढक ढक लिया। और 
  • यह ग्रहण हिन्दु कलैण्डर के अनुसार पौष मास की अमावस्या पर सबह 8 बजकर 17 मिनट से लेकर 10 बजकर 57 मिनट चला। 

सूर्य ग्रहण होता कैसे है ?

 जब सूर्य और पृथ्वी के बीच चंद्रमा आ जाती है तो चंद्रमा के समाने आ जाने पर सूर्य की रौशनी बराबर पृथ्वी पर नहीं पहुॅंच पाती तो ऐसी स्थिति को सूर्य ग्रहण कहते है। 
सूर्यग्रहण 2019
वैज्ञानिकों के लिए यह एक ओर यह ग्रहण शोध का विषय है क्योंकि इस दिन वैज्ञानिक सूर्य की वायुमंडल में होने वाले उथल पुथल का अध्यन करते है। और सूर्य के बारे में जानकारियों को वे अपडेट करते है। तो ज्योतिषियों के लिए यह विशेष मायने रखता है। इसका सूतक काल 12 घंटे पहले शुरू हो हुआ था

कहाॅं-कहाॅ दिखा यह ग्रहण ?

इस वर्ष 2 जुलाई और 6 जनवरी को भी सूर्य ग्रहण हुआ था मगर भारत में वह दिखाई नहीं दिया था । 26 जनवरी का सूर्य ग्रहण भारत में तो दिखा ही साथ ही साथ यह नेपाल, पाकिस्तान, भूटान, बंग्लादेष,आस्ट्रेलिया देशों से भी देखा गया । दक्षिण भारत के कन्नानोर, कोयंबटूर, कोझीकोड, मदुरई मंगलोर , ऊटी, विरूचिरापल्ली इत्यादि जगहों से यह ग्रहण गुजरा।सच तो यह है कि आप धरती के किस कोण पर खड़े हैं यह निर्भर करता है कि किस प्रकार दिखेगा ?
दक्षिण भारत से यह ग्रहण सबसे बेहतर दिखा क्योंकि इस जगह की पोजिशन एवं कोण ही ऐसा था जो सूर्य की दिशा को सही ढंग से दिखाया । यहां पर डायमंड रिंग का नजारा अदभुत था।  वहीं भारत के अन्य भागों में आंशिक सूर्य ग्रहण ही देखा गया ।
इस सूर्य ग्रहण की कुल अवधि करीब 3.30 घंटे की थी। जबकि भारत में सूर्य ग्रहण सुबह 8.17 बजे से शुरू हुआ।  ग्रहण के शुरू और समाप्त होने का समय अलग-अलग स्थानों पर अलग-अलग दिखाई दिया।

यह सूर्यग्रहण वलयाकार था। भारत में इस 2020 में  2 सूर्य ग्रहण और 4 चंद्र ग्रहण निर्धारित है ।


ज्योतिष ज्ञाता इस ग्रहण को अशुभ मान रहे थे महाभारत काल में भी ऐसा ही सूर्य ग्रहण हुआ था 

ज्योतिषियों की सलाह

यह है कि इस दौरान कोई शभ कार्य न करें । सूतक काल में भोजन बनाना तथा खाना दोनों ही वर्जित है। देवी देवताओं की मूर्ति तथा तुलसी का स्पर्श नहीं करना चाहिए। 

क्या करें 

  • मंत्रों का उच्चारण करें ।
  • भगवान का ध्यान ओर भजन करें । तथा 
  • ग्रहण समाप्ति के बार घर में गंगा जल का छिड़काव करें । 
  • हो सके तो सूतक काल से पहले ही भोजन तैयार कर उसमें तुलसी के पत्ते डालकर रखें । 
  • सूतक 25 दिसंबर से 5ः33 मिनट से ही सूतक लग जाऐगा।(भारत के परिपेक्ष में इसे कुछ लोग नहीं मान रहें है।)
  • मंदिरों के कपाट इस दौरान बंद रहेंगे। 

वलयकार पथ ये होते हुए यह ग्रहण देष के उत्तर और दक्षिण की ओर बढ़ने से आंषिक सूर्य ग्रहण की अवधि कम होती गया । 
बस्तर में आशिंक रूप से दिखने के आसार है। इस असाधरण खगोलिय घटना के अध्ययन लिए वैज्ञानिकों ने अपने स्तर पर तैयारियां कर ली है।

26 दिसंबर को पड़ने वाले सूर्य ग्रहण का सभी राशियों पर प्रभाव जानिए??

 बस्तर में आशिंक रूप से दिखने के आसार है। इस असाधरण खगोलिय घटना के अध्ययन लिए वैज्ञानिकों ने अपने स्तर पर तैयारियां कर ली है।



26 दिसंबर को पड़ने वाले सूर्य ग्रहण का सभी राशियों पर प्रभाव जानिए??
 इटावा के ज्योतिषाचार्य डाॅ. संजय गुप्ता ने बताया है कि है कि गणना के अनुसार ग्रहण कर्क तुला कुंभ एवं मीन राशि के लिए शुभ फलदाई है जबकि मेष मिथुन सिंह वृश्चिक के लिए  मामूली फलदाई है,  जबकि वृषभ कन्या मकर राशि को अच्छा लाभ है

 ग्रहण काल का समय 26 दिसंबर 8:17 से 10:57 तक सूतक काल 25 दिसंबर 2019 शाम 8:00 बजे से शुरू ग्रहण काल के दौरान सावधानी अवश्य  बरतें
 भारत के विभिन्न शहरों में सूर्यग्रहण 26 दिसंबर 2019 को कितने बजे शुरू होगा उसका विवरण दे रहा हूँ
बीकानेर      सवेरे  8.11 से 10.50 तक
कोलकाता   सवेरे  8.26 से 11.33 तक
जयपुर        सवेरे  8.13 से 10.55 तक
जोधपुर       सवेरे  8.09 से 11.03 तक
दिल्ली         सवेरे  8.16 से 10.57 तक
भुवनेश्वर      सवेरे  8.19 से 11.28 तक
मुम्बई          सवेरे  8.04 से 10.52 तक
कोयम्बटूर    सवेरे  8.06 से  11.10 तक
अमृतसर      सवेरे  8.18 से 10.50 तक
बनारस        सवेरे  8.20 से 11.13 तक
उज्जैन         सवेरे  8.08 से 10.58 तक
हैदराबाद     सवेरे  8.08 से 11.10 तक
गौहाटी        सवेरे  8.39 से 11.36 तक
जम्मू           सवेरे  8.20 से 10.49 तक
नागौर         सवेरे  8.11 से 10.51 तक
पटना          सवेरे  8.24 से 11.19 तक
रायपुर         सवेरे  8.14 से 11.15 तक
जैसलमेर      सवेरे  8.08 से 10.46 तक
हरिद्वार        सवेरे  8.20 से 10.57 तक
अजमेर        सवेरे  8.11 से 10.53 तक
             इस ग्रहण का सूतक 25 दिसंबर 2019 की रात 8 बजे से शुरू होगा इस समय धनु राशि वाले लोगों के लिए व मुला नक्षत्र में पैदा होने वाले लोगों के लिये कष्टप्रद रहेगा ।

एक नजर डालते है सन 2020 में सूर्य ग्रहण और चंद्र ग्रहण की तारीख व समय पर 

चंद्र ग्रहण: 

10 जनवरी 2020 चंद्र ग्रहण ( पहला)
ग्रहण का टाइम: रात 10 बजकर 37 मिनट से 11 जनवरी को 2 बजकर 42 मिनट
कहां दिखाई देगा: भारत, यूरोप, अफ्रीका, एशिया और आस्ट्रेलिया
5 जून 2020 चंद्र ग्रहण ( दूसरा)
ग्रहण का टाइम : रात्रि में 11 बजकर 15 मिनट से 6 जून को 2 बजकर 34 मिनट तक

कहां दिखाई देगा: भारत, यूरोप, अफ्रीका, एशिया और आस्ट्रेलिया
5 जुलाई 2020 चंद्र ग्रहण (तीसरा)
30 नवंबर 2020 चंद्र ग्रहण ( चौथा)
ग्रहण का टाइम: दोपहर 13 बजकर 02 मिनट से शुरू होगा और शाम 17 बजकर 23 मिनट

सूर्य ग्रहण

21 जून 2020 सूर्य ग्रहण ( पहला)
ग्रहण का टाइम: 21 जून की सुबह 9 बजकर 15 मिनट से दोपहर 15 बजकर 03 मिनट तक
कहां दिखाई देगा: भारत, दक्षिण पूर्व यूरोप और एशिया


कहां दिखाई देगा: भारत, अमेरिका, प्रशांत महासागर, एशिया और आस्ट्रेलिया

14 दिसंबर 2020 सूर्यग्रहण ( दूसरा)
 ग्रहण का टाइम: शाम को 19 बजकर 03 मिनट से 15 दिसंबर को 12 बजे सूर्यग्रहण
कहां दिखाई देगा: भारत में नहीं दिखेगा, 

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Dec 23, 2019

एन.आर.सी N R C को जानिए।

आजकल सीएए यानि सीटिज़न अमेण्डमेंट एक्ट  और NRC की काफी चर्चा हो रही है । मोदी नेतृत्व भाजपा ने जब से नागरिकता संसोधन बिल लाया और
यह राज्य सभा में पास हुआ है तब से देश में इसे लेकर मिश्रित विचार देखने में आ रहें है । सीएए यानि सीटिजन अमेंडमेंट एक्ट जब ये बिल के रूप में राज्य सभा में पेश किया गया था तब इसके बारे में मैने विस्तृत चर्चा की थी और और इसके प्रावधानों के बारे में बताया था।

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 इसी से मिलता जुलता है एन आरसी National Register of Citizen. एनआरसी अर्थात नेशनल सिटिजन रजिस्टर असम में रहने वाले भारतीय नागरिकों की पहचान के लिए बनाई गई एक सूची है। जिसका उद्देश्य राज्य में अवैध रूप से रह रहे अप्रवासियों खासकर बांग्लादेशी घुसपैठियों की पहचान करना है।
इस प्रक्रिया के लिए 1986 में सिटीजनशिप एक्ट में संशोधन कर असम के लिए विशेष प्रावधान किया गया। इसके अंतर्गत रजिस्टर में उन्ही लोगों के नाम शामिल किए गए हैं, जो 25 मार्च 1971 के पहले असम के नागरिक हैं, या उनके पूर्वज राज्य में रहते आए हैं।
दरअसल हुआ यूॅ कि  विभाजन के दौरान काफी संख्या में लोग असम से पूर्वी पाकिस्तान चले गए मगर उनके ज़मीने भारत में रह गई , इस कारण कई लोगों का भारत में आना जाना जारी था  अब दिक्कते यह आई कि मूल भारतीयों की पहचान करना मुश्किल हो गया। जिसके कारण कई प्रकार की समस्याएं उत्पन्न होने लगी, सरकार ने इस समस्या से निपटने के लिए वर्ष 1951 में राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (एनआरसी) तैयार किया। 

इसका मकसद क्या है? 

सीबीए जहाँ एक ओर नागरिकता प्र्रदान करता है तो दूसरी तरफ एन आर सी अवैध रूप से भारत में बसे लोगों को बाहर उनके देश वापस भेजने के लिए बनाया गया है। इसकी शुरूआत 2013 में असम में हुई थी। यानि फिलहाल यह केवल असम में लागू है। हालांकि गृह मंत्री अमित शाह ये साफ कर चुके हैं कि एनआरसी को पूरे भारत में लागू किया जाएगा। मगर प्रत्येक राज्य मंे उसका प्रावधान और मसौदा अलग होगा। सरकार यह स्पष्ट कर चुकी है कि एनआरसी का भारत के किसी धर्म के नागरिकों से कोई लेना देना नहीं है । और न ही यह धर्म विषेष को प्रोत्साहित करने के लिए है। इसका मकसद केवल अवैध घुसपैठियों की खोज खबर लेना और उन्हें वापस उनके सम्बधिंत countries में भेजना है।
यहां कुछ ऐसे सवाल है जिन्हें हम सबको जानना जरूरी है जो एनआरसी से सम्बध रखते हैं । जैसे एन आर सी का मतलब क्या है? 

कोई किस प्रकार एनआरसी में शामिल हो सकता है? 

तो सबसे पहले ये समझना जरूरी है कि एनआरसी में कोई किस प्रकार शामिल हो सकता है? 
इसमें शामिल होने से पहले किसी नागरिक को ये साबित करना होगा कि उसके पूर्वज 24 मार्च 1971 से पहले भारत आ गए थे। बता दें कि अवैध बांग्लादेशियों को निकालने के लिए इसे पहले असम में लागू किया गया है। अगले संसद सत्र में इसे पूरे देश में लागू करने का बिल लाया जा सकता है। 

एनआरसी के लिए किन दस्तावेजों की जरूरत है?

भारत का वैध नागरिक साबित होने के लिए एक व्यक्ति के पास 
  • रिफ्यूजी रजिस्ट्रेशन, 
  • आधार कार्ड,
  •  जन्म का सर्टिफिकेट,
  • एलआईसी पॉलिसी, 
  • सिटिजनशिप सर्टिफिकेट, 
  • पासपोर्ट, 
  • सरकार के द्वारा जारी किया लाइसेंस या सर्टिफिकेट में से कोई एक होना चाहिए।

तो उन लोगों का क्या होगा जो अपनी पहचान या दस्तावेज नहीं दे पाए तो ? 

ये एक जरूरी प्रश्न है । ऐसे व्यक्तियों को चिन्हांकित किया जाएगा ठीक उसी तरह जिस प्रकार असम में किया है। इसके बाद सरकार उन देशों से संपर्क करेगी जहां के वो नागरिक हैं। अगर सरकार द्वारा उपलब्ध कराए साक्ष्यों को दूसरे देशों की सरकार मान लेती है तो ऐसे अवैध प्रवासियों को वापस उनके देश भेज दिया जाएगा।
 तो अंतर क्या है एन आरसी और नागरिकता संसाधन कानून में ?
सबसे पहला अंतर तो यह है कि जो बाहर के है और यहां 6 साल से अधिक रह चुके है उन्हें नए नागरिकता संशोधन कानून के तहत भारत की नागरिकता मिल जाएगी । एन आरसी में ऐसे घुसपैठियों को उनके देश वापस भेजने का प्रावधान है । इसकी शुरूआत असम में हो चुकी है। जल्द ही पूरे देश में एनआरसी लागू हो जाएगा तो वहां के लोगों को चिन्हिंत कर उनके संबंधित  देशों  में भेज दिया जाएगा।
केन्द्र सरकार यह स्पष्ट कर चुकी है कि प्रत्येक राज्य में उसका प्रावधान और मसौदा अलग होगा।

इतिहास के पन्नों में एनआरसी

  • 1951- पहली बार एनआरसी तैयार किया गया
  • 1971- भारत-पाकिस्तान युद्ध और बड़ी मात्रा में बांग्लादेशी शरणार्थियों का भारत में प्रवेश
  • 1970-80- असम में जनांकिकीय परिवर्तन और परिणामस्वरूप अवैध शरणार्थियों और राज्य के निवासियों के बीच सामाजिक, जातीय और वर्ग-संघर्ष शुरू
  • 1979-85- ऑल असम स्टूडेंट्स यूनियन  के नेतृत्व में असम विद्रोह शुरू और इसको ऑल असम गण संग्राम परिषद का भी समर्थन
  • 1985- असम समझौते पर हस्ताक्षर और 1951 में प्रकाशित राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर का अपडेट किया जाना
  • 2012-13- सर्वोच्च न्यायालय का हस्तक्षेप, केंद्र सरकार को एनआरसी को अपडेट करने का दिया निर्देश
  • 31 अगस्त 2019- एनआरसी की अंतिम सूची जारी, करीब 19 लाख लोग हुए बाहर, एनआरसी में गड़बड़ी का आरोप


एनआरसी की आवश्यकता क्यों हुई ?

जैसे कि असम में इस समय लगभग 50 लाख बांग्लादेशी गैर-कानूनी ढंग से रह रहे हैं,
NRC Cartoon
जिसकी वजह से यहां सामजिक और आर्थिक समस्याएं कई दशकों से बनी हुई है।  भारतीय परिपेक्ष्य की बात करें तो एनआरसी उन्हीं राज्यों में लागू होती है जहाँ से अन्य देश के नागरिक भारत में प्रवेश करते हैं। एनआरसी की रिपोर्ट ही बताती है, कि कौन भारतीय नागरिक है और कौन नहीं है, यदि वह व्यक्ति भारतीय है, तो उन्हें सामान रूप से वह सभी अधिकार प्राप्त होंगे, जो एक भारतीय को प्राप्त है अगर नहीं तो उन्हें वापस उनके देषों में भेजने का प्रावधान भी है। 

नागरिकता खत्म होने से दिक्कतें क्या आएगीं ?

एनआरसी की सूची जारी होने के बाद वह किसी भी देश के नागरिक नहीं  होने की स्थिति में राज्य में हिंसा का खतरा बन जाता है।
ऐसे लोग काफी लम्बे समय से असम में निवास कर रहे थे, भारतीय नागरिकता समाप्त होने के बाद वह न तो पहले की तरह वोट दे सकेंगे, न इन्हें सरकार की किसी कल्याणकारी योजना का लाभ मिलेगा और अपनी ही संपत्ति पर भी इनका कोई अधिकार भी नहीं रहेगा।
जिन लोगों के पास स्वयं की संपत्ति है, वह दूसरे लोगों का निशाना बनेंगे।
तो जाहिर है ये स्थिति निर्मित न हो इसीलिए सरकार ने एनआरसी को लेकर ये कदम उठाया है । देष के सभी राज्यों में अगर एनआरसी लागू हो जाएगी तो ऐसे लोगों को चिन्हित करने में सुविधा होगी। 

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Dec 19, 2019

Goa: इतिहास के पन्नों से

गाय चराने वालों का देश: 

महाभारत में गोवा का उल्लेख गोपराष्ट्र यानी गाय चरानेवालों के देश के रूप में मिलता है। अन्य नामों में गोवे, गोवापुरी, गोपकापाटन और गोमंत प्रमुख हैं। टोलेमी ने गोवा का उल्लेख वर्ष 200 के आस-पास गोउबा के रूप में किया है। अरब के मध्युगीन यात्रियों ने इस क्षेत्र को चंद्रपुर और चंदौर के नाम से इंगित किया है जो मुख्य रूप से एक तटीय शहर था। जिस स्थान का नाम पुर्तगाल के यात्रियों ने गोवा रखा वह आज का छोटा सा समुद्र तटीय शहर गोआ-वेल्हा है। बाद में उस पूरे क्षेत्र को गोवा कहा जाने लगा जिस पर पुर्तगालियों ने कब्जा किया।
Goa
दक्षिण कोंकण क्षेत्र का उल्लेख गोवाराष्ट्र के रूप में पाया जाता है। संस्कृत के कुछ कई पुराने स्रोतों में गोवा को गोपकपुरी और गोपकपट्टन कहा गया है जिनका उल्लेख अन्य ग्रंथों के अलावा हरिवंशम और स्कंद पुराण में मिलता। गोवा को बाद में कहीं-कहीं गोअंचल भी कहा गया है।

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इतिहास


गोवा के लंबे इतिहास की शुरुआत तीसरी सदी ईसा पूर्व से शुरू होती है जब यहां मौर्य वंश के शासन की स्थापना हुई थी। बाद में पहली सदी के शुरुआत में इस पर कोल्हापुर के सातवाहन वंश के शासकों का अधिकार स्थापित हुआ और फिर बादामी के चालुक्य शासकों ने इस पर वर्ष 580 से 750 तक राज किया। इसके बाद के सालों में इस पर कई अलग अलग शासकों ने अधिकार किया। वर्ष 1312 में गोवा पहली बार दिल्ली सल्तनत के अधीन हुआ लेकिन उन्हें विजयनगर के शासक हरिहर प्रथम द्वार वहां से खदेड़ दिया गया। अगले सौ सालों तक विजयनगर के शासकों ने यहां शासन किया और 1469 में गुलबर्ग के बहामी सुल्तान द्वारा फिर से दिल्ली सल्तनत का हिस्सा बनाया गया। बहामी शासकों के पतन के बाद बीजापुर के आदिल शाह का यहां कब्जा हुआ जिसने गोआ-वेल्हा को अपनी दूसरी राजधानी बनाया।

पुर्तगालियों का कब्जा


इस शहर पर मार्च 1510 में अलफांसो-द-अल्बुकर्क के नेतृत्व में पुर्तगालियों का आक्रमण हुआ। गोवा बिना किसी संघर्ष के पुर्तगालियों के कब्जे में आ गया। पुर्तगालियों को गोवा से दूर रखने के लिए यूसूफ आदिल खां ने हमला किया। शुरू में उन्होंने पुर्तगाली सेना को रोक तो दिया लेकिन बाद में अल्बुकर्क ज्यादा बड़ी सेना के साथ लौटे और एक दुःसाहसी प्रतिरोध पर विजय प्राप्त कर उन्होंने शहर पर फिर से कब्जा कर लिया और एक हिन्दू तिमोजा को गोवा का प्रशासक नियुक्त किया। गोवा पूर्व दिशा में समूचे पुर्तगाली साम्राज्य की राजधानी बन गया। इसे लिस्बन के समान नागरिक अधिकार दिए गए और 1575 से 1600 के बीच यह उन्नति के सर्वोच्च शिखर पर पहुंचा।

अंग्रेजों के कब्जे में


1809-1815 के बीच नेपोलियन ने पुर्तगाल पर कब्जा कर लिया और एंग्लो पुर्तगाली गठबंधन के बाद गोवा अपनेआप ही अंग्रेजी अधिकार क्षेत्र में आ गया। 1815 से 1947 तक गोवा में अंग्रेजों का शासन रहा और पूरे हिंदुस्तान की तरह अंग्रेजों ने वहां के भी संसाधनों का जमकर शोषण किया।
पुर्तगालियों के कब्जे में फिर से

आजादी के समय पंडित जवाहर लाल नेहरू ने अंग्रेजों से यह मांग रखी कि गोवा को भारत के अधिकार में दे दिया जाए। वहीं पुर्तगाल ने भी गोवा प
र अपना दावा ठोक दिया। अंग्रेजों की दोहरी नीति व पुर्तगाल के दबाव के कारण गोवा पुर्तगाल को हस्तांतरित कर दिया गया। गोवा पर पुर्तगाली अधिकार का तर्क यह दिया गया था कि गोवा पर पुर्तगाल के अधिकार के समय कोई भारत गणराज्य अस्तित्व में नहीं था।

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गोवा स्वतंत्रता आंदोलन


गोवा का स्वतंत्रता आंदोलन 1928 में शुरू हुआ जब गोवा के राष्ट्रवादियों ने मिलकर 1928 में मुंबई में ‘गोवा कांग्रेस समिति’ का गठन किया। गोवा कांग्रेस समिति के अध्यक्ष डॉ.टी.बी.कुन्हा थे। डॉ. टी. बी. कुन्हा को गोवा के राष्ट्रवाद का जनक माना जाता है। दो दशक तक लगभग गोवा का स्वतंत्रता आंदोलन थोड़ा धीमा रहा। 1946 में स्वतंत्रता सेना और प्रमुख समाजवादी नेता डॉ.राम मनोहर लोहिया के गोवा पहुंचने से आंदोलन को नई दिशा मिलती है। उन्होंने नागरिक अधिकारों के हनन के विरोध में गोवा में सभा करने की चेतावनी दे डाली। मगर इस विरोध का दमन करते हुए उनको गिरफ्तार कर जेल भेज दिया गया।

भारतीय सेना की तैयारी


तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू और रक्षामंत्री कृष्ण मेनन के बार-बार के आग्रह के बावजूद पुर्तगाली भारत को छोड़ने तथा झुकने को तैयार नहीं हुए। उस समय दमन-दीव भी गोवा का हिस्सा था। जब पुर्तगाली पंडित जवाहर लाल नेहरू के आग्रह को नहीं माने तो अंत में भारत के पास ताकत का इस्तेमाल ही एकमात्र विकल्प रह गया था। 1954 के मध्य में गोवा के राष्ट्रवादियों ने दादर और नगर हवेली की बस्तियों पर कब्जा कर लिया और भारत समर्थक प्रशासन की स्थापना की। 1961 में भारतीय सेना के तीनों अंगों को युद्ध के लिए तैयार हो जाने के आदेश मिले। मेजर जनरल के.पी. कैंडेथ को ’17 इन्फैंट्री डिवीजन’ और ’50 पैरा ब्रिगेड’ का प्रभार मिला। भारतीय सेना की तैयारियों के बावजूद पुर्तगालियों पर किसी भी प्रकार का असर नहीं पड़ा। भारतीय वायु सेना के पास उस समय छह हंटर स्क्वॉड्रन और चार कैनबरा स्क्वाड्रन थे।

गोवा मुक्ति अभियान


गोवा अभियान में हवाई कार्रवाई की जिम्मेदारी एयर वाइस मार्शल एरलिक पिंटो के पास थी। भारतीय सेना ने 2 दिसंबर को ‘गोवा मुक्ति’ अभियान शुरू कर दिया। वायु सेना ने 8 और 9 दिसंबर को पुर्तगालियों के ठिकाने पर अचूक बमबारी की। भारतीय थल सेना और वायु सेना के हमलों से पुर्तगाली तिलमिला गए। इस तरह 19 दिसंबर, 1961 को तत्कालीन पुर्तगाली गवर्नर मैन्यू वासलो डे सिल्वा ने भारत के सामने समर्पण समझौते पर दस्तखत कर दिए। इस तरह भारत ने गोवा और दमन दीव को मुक्त करा लिया और वहां से पुर्तगालियों के 451 साल पुराने औपनिवेशक शासन को खत्म कर दिया। पुर्तगालियों को जहां भारत के हमले का सामना करना पड़ रहा था, वहीं दूसरी ओर उन्हें गोवा के लोगों का रोष भी झेलना पड़ रहा था।

जब पूर्ण राज्य बना गोवा


बाद में गोवा में चुनाव हुए और 20 दिसंबर, 1962 को श्री दयानंद भंडारकर गोवा के पहले निर्वाचित मुख्यमंत्री बने। गोवा के महाराष्ट्र में विलय की भी बात चली, क्योंकि गोवा महाराष्ट्र के पड़ोस में ही स्थित था। वर्ष 1967 में वहां जनमत संग्रह हुआ और गोवा के लोगों ने केंद्र शासित प्रदेश के रूप में रहना पसंद किया। बाद में 30 मई, 1987 को गोवा को पूर्ण राज्य का दर्जा दे दिया गया और इस प्रकार गोवा भारतीय गणराज्य का 25वां राज्य बना।

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Dec 16, 2019

सिंन्धु घाटी सभ्यता

चलिए बात करते हमारे देश में सभ्यता के विकास की किस प्रकार पाषण युग के बाद जब खाना बदोश ज़िदगी से मनुष्य ने स्थायी तौर पर बसना शुरू किया और फिर शुरू हुआ विश्व की बड़ी
सभ्यता के विकास की कहानी । और पुरी दुनियां जाना एक सभ्यता के बारे में जिसे सिंन्धु घाटी सभ्यता कहते हैं। पहले जानते हैं ’’सभ्यता’’ से क्या तात्पर्य है ?

क्या अर्थ है सभ्यता का

संसार के किसी हिस्से में किसी खास समय पर विकसित जीवन शैली को सभ्यता कहते हैं । समाज में प्रचलित सभ्यता की निम्न लिखित विशेषताएं होती है?
  • सबसे पहले किसी कस्बे या शहर का निर्माण होता है। और लोग वहां बसते हैं । 
  • संगठित पेशा जैसे कृषि इत्यादि का विकास होता है।
  • cities में संगठित प्रशासनिक व्यवस्था होती है, धार्मिक और राजनैतिक संगठन भी होता है।
  • भाषा या लिपि का प्रचलन होता है।
  • मजदूर वितरण प्रणालि तथा सांकृतिक अभिव्यक्ति होती है।
इस लिहाज से भारत में 2500 से 1500 ई.पू. सिंन्धु नदी के किनारे एक सभ्यता विकसित हुई थी जिसे सिन्धु घाटी की सभ्यता के नाम से हम आज जानते हैं । कल्पना करें आज के विश्व के अनेक सभ्य देशों में लोग जंगली जीवन यापन कर रहे थे उस दौर में हमारे देश में लोग व्यवस्थित जीवन जीने के आदी हो चुके थे । उनके मकान, घर और रहन-सहन आज की ही तरह के थे ये बात आज से 4500 साल पहले की है । आईए जाने क्या होता था उस समय? लोग किस प्रकार के घरों एवं सामाजिक व्यवस्था में रहा करते थे । मगर सबसे पहले ये जानते हैं कि इसका पता आधुनिक समय में कैसे चला।

जानिए पृथ्वीराज चैाहान और मुहम्मद गौरी के बारे में लिंक पर क्लिक कीजिए!
तराईन की लड़ाई

एक सभ्यता विकसित हुई और खत्म हुई 1500 ई.पू. में 

 

फिर 1920-22 के दरम्यान हमे पता चला कि सिन्धु नदी के किनारे कोई पूर्ण विकसित शहर था।
भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग के महानिदेशक सर जाॅन मार्शल के निर्देश पर दयाराम साहनी ने पाकिस्तान के शाहीवाली में रावी नदी के वायें तट पर स्थित हड़प्पा टीले का उत्खनन करवाया ।

1922 में रखाल दास बेनर्जी ने सिन्ध प्रान्त के लरकाना जिले में सिन्धु नदी के दाहिने तट पर स्ािित मोहनजोदड़ों का उत्खनन करवाया । मोहन जोदाड़ो के टीले का उत्खनन 1922 से 1930 तक हरग्रीब्ज, सनाउललाह, के.एन.दीक्षित एवं जान मार्षल ने विस्तृत पैमाने पर किया  तो एक पूर्ण विकसित सभ्यता का  पता चला 

हड़प्पा नामक पुरानी जगह पर ज्ञात होने के कारण इसे  हम हड़प्पा सभ्यता कहते हैं और ठीक उसी प्रकार सिंध नदी के इलाके खुदाई की गई तो उसमें हमें एक और सभ्यता का पता चला जिसे मोहेन जोदाड़ो की सभ्यता कहा जाता है जिस पर फिल्म भी बन चुकी है।
ये दोनों की इलाके वर्तमान में पाकिस्तान में आते हैं हांलाकि इनका कुछ हिस्सा अभी भी भारत में हैं।
इस पूरी खुदाई में मिले अवशेष ये बताते हैं कि भारत एक पूर्ण विकसित देश था जो काफी समय तक संसार में जिसे अल्प विकसित देश मानता था।

कहां कहा की गई खुदाई और क्या मिले

हड़प्पा -रावी नदी पर 1921 दयाराम सहानी द्वारा खुदाई की गई जो मोंटगोमरी (पाकिस्तान) में स्थित है।
मोहेन जोदाड़ो और कोटदीजो -सिन्धु नदी पर रखाल दास बैनर्जी ने लरकाना सिन्ध (प्रांत जो पाकिस्तान में है) खुदाई करवायी।
चन्हूदड़ो- सिन्धु नदी पर 1931 में अर्नेस्ट मैके खुदाई हुई
लोथल -भगवा नदी पर
बनबाली - सरस्वती नदी पर 1973 में आर. एस विष्ट ने करवाया
रंगपुर - भादर नदी पर स्थित है । इसकी खुदाई 1934 में माधेस्वरूप वत्स द्वारा अहमदाबाद में की गई ।
सुत्काकोह- शादी कौर नदी
कोटदीजी की खुदाई 1935 में फजल अहमद द्वारा हुई जो सिन्ध (पाकिस्तान)में स्थित है।
धौलीबीरा की खुदाई 1967-68 में आर.एस.विष्ट द्वारा हुई । यह कच्छ गुजरात में हैं


शानदार टाउन प्लानिंगः-

आज के आधुनिक शहर में अगर बेहतरीन शहर की कल्पना करते है तो हमें मिलती है ंचैड़ी सड़के जो किसी चैराहे पर एक दूसरे को आपसे में सुनियोजित ढंग से काटती हो, और पैदल चलने वालों के लिए फुटपाथ बने हों।  यह 2600 1900 ई.पू. सिंधु घाटी सभ्यता में दिखाई थी। इतना ही नहीं सड़को पर एक निष्चित दूरी पर लैम्प पोस्ट बने हुए थे जो रात में लोगों को रौषनी देने का काम करते थे। शहर की नालियांे की उम्दा व्यवस्था थी । खुदाई में मिले नगरी अवषेषों को देखने से यही पता चलता है कि मोहन जोदड़ो, लोथल जैसे दूसरे शहरों में शानदार नालियांे की व्यवस्था थी। घरों से पानी निकासी के लिए बनी नालियां मुख्य नालियों से जुड़ी हुई होती थीं।और मुख्य नालियां प्रमुख मार्गो के अंदर से होती हुई जाती थीं । इतना ही नहीं जगह-जगह मेनहोल बनाए गए थे जिससे बहाव की निगरानी हो सके।
इन जगहों की पानी निकासी के लिए उम्दा नालियों की व्यवस्था थी जो आज के आधुनिक शहरों में भी देखने को नहीं मिलती है। शायद इसीलिए बारिष के दिनों में जल भराव बड़े शहरों में आज आम बात हो गई है मगर लोथल और मोहन जोदाड़ों के शहरों में ऐसा शायद नहीं देखा गया । ये सभी ये दर्षाते हैं कि पूरा शहर की जो सिविल व्यवस्था काफी लाजवाब थी।

मकान

खुदाई में मिले भवनों के अवषेषों के अध्ययन से भवनों को इतिहास कारों ने तीन श्रेणियों में बांटा है
पहली श्रेणी में ऐसे मकान आते थे जो आकार में काफी बड़े होते थे।
दूसरे श्रेणी में सार्वजनिक स्नानागार यानि स्वीमिंग पूल
तीसरे श्रेणी में ऐसे भवन आते थे जो लोगों के रहने के लिए बनाए जाते थे। ये सभी पक्की ईटों से बने होते थे। मजेदार बात तो यह है कि ये दोमंजिले मकान हुआ करते थे। 
मोहन जोदाड़ों और हड्प्पा के शहरों को दो हिस्सों मंे इतिहासकारों ने बांटा है
पहले हिस्से में बसे शहर को उचे स्थाने में बसाया गया था जिन्हें इनकी बनावट देखकर दुर्ग या नगर कोट कहा जा सकता है । 
तो दूसरा हिस्सा शहर को जो होता था वह निचले इलाके में बसाया जाता था।
ऊँचे स्थानों में बसे शहर में भोजन के अनाज गृह, असेम्बली हाॅल , और फैक्टरी वगैरह थी
गोदाम की बात कहें तो खुदाई में एक बड़ा गोदाम मिला है जिसकी लम्बाई 46 मीटर है तो चैड़ाई 15 मीटर है । इसकी बनावट और मिले अवषषों से तो पता यही चलता है कि यह अनाजों को रखने के लिए रखा गया था।
वहीं विषाल स्नानागार की 11.7 से 6.9 मीटर लम्बाई चैड़ाई थी । तो इसकी गहराई 2.4 मीटर थी। सम्भवतः इसका उपयोग किसी धार्मिक आयोजनों में किया जाता था।
और एक सभागार भी मिला है जिसकी चैड़ाई और लम्बाई 25 मीटर थी । इस हाॅल में 20 बड़े खम्बे मिले है। ये सभी खम्बें चार चार की श्रेणियों मंे बने हुए थे। इसमंे सम्भवतः शासक वर्ग बैठक किया करते थे। 

भवन निर्माण से जुड़ी कुछ अहम पहलु


कालीबंगा में मकान 30X15 X7.5 सेमी आकार वाली कच्ची ईटों के बने हुए थे तथा पक्की ईटों का प्रयोग केवल नालियों कुओं तथा दहलीज के लिए किया जाता था।
सैंन्धव सभ्यता में प्रत्येक मकान के मध्य एक आंगन होता था।
घरों के दरवाजे मुख्य सड़क में न खुलकर पिछवाड़े की ओर ली में खुलते थे।
लोथल,रंगपुर तथा कालीबंगा में भवन निर्माण में कच्ची ईटे प्रयुक्त हुई हैं ।
हड़प्पा और मोहन जोदाड़ों के टीलों के उत्खनन के दौरान श्रमिक आवासों के साक्ष्य मिले हैं । वहीं दूसरी तरफ मोहन जोदड़ों के एक स्थल पर सड़क के बीच कुम्हारों का आँवा मिला है।

 

लोथल में बंदरगाह भी मिला है जिससे यह पता उनका व्यापार दूर देषों से होता था। प्राप्त अवषेषों के आधार पर यह पता चलता है इनका व्यापार दूर-दूर तक फैला हुआ था।

जानते हैं क्या आयात होता था यहाँ

सोना अफगानिस्तान, कर्नाटक फारस से लाया जात था।
वहीं चाँदी अफगानिस्तान, ईरान से मंगायी जाती थी।
फिरोजा ईरान और अफगानिस्तान से मंगाया जाता था
टिन मध्य एषिया,अफगानिस्तान से मिलता था । गोमेद सौराष्ट्र गुजरात में पाया जाता था।
सीमा दक्षिण भारत राजस्थान अफगानिस्तान ,ईरान से प्राप्त होता था ।
देवदार,षिलाजीत हिमालय से प्राप्त होता था।
स्टीएटाईट से बनी 19 सेमी लम्बी पुरूष की की खण्डित मूर्ति प्राप्त हुई हो । इसकी आँखें सुषुप्तावस्था में है तथा होंठ मोटे हैं । सैंधव सभ्यता में धातुमूतियाँ मोहन-जोदड़ो, चन्हूदड़ी लोथल एवं कालीबंगा से प्राप्त हुई है ये मूतियाँ कांसे एवं ताबंे की धातुओं से बनी हुई हैं।
वहीं चन्हूदड़ों नामक स्थान से प्राप्त बैलगाड़ी व एक्कागाड़ी प्रमुख आकर्षण हैं । इसी प्रकार कालीबंगा से प्राप्त बैल की मूर्ति,लोथल से प्राप्त बैल,कुत्ता, खरगोष और पक्षियों की मूर्तियां सैंधव जनों की धातुकला ज्ञान का उदाहरण है।
मुहरें चर्ट,गोमेद और मिट्टी की बनी होती थीं । मुहरांे पर किसी पशु का अंकन और संक्षिप्त मुद्रालेख उत्कीर्ण मिलता है।

इसके अलावा खुदाई में मिले सिक्के और अनेक प्रकार बर्तन मिले हैं जिसपर खूबसूरत नक्काशी की गई है। जो खुदाई में सिक्के मिले वे मिट्टी और तांबे से बने हुए थे।
इन सिक्कों के अध्ययन से यह पता चलता है सिन्धु सभ्यता के लोगों धर्मिक रीति रिवाज और रहन सहन का पता चलता है। जैसे मोहन जोदाड़ों से प्राप्त एक मुद्रा में पशुपति या षिव की मुद्रा गड़ी मिली और कुछ अंकित लिपियां मिली है।
 अपठ्य है सैन्धव लिपि

एक बड़ा दुर्भाग्य  यह है कि सिन्धु घाटी सभ्यता के दौरान प्रयोग की जाने वाली लिपि को अभी तक समझा नहीं जा सका है। कहते है अगर यह समझ में आ गई तो इस सभ्यता से जुड़े कई राज खुल जाएंगे । इतिहासकार और पुरातत्व शात्री इस दिशा में निरंतर प्रयत्नशील हैं । इतना ही पता चल पाया है कि उनकी लिपि चित्रात्मक होती थी और इतिहासकार बी.बी. लाल का कहना है कि यह दाएं से बायीं ओर लिखी जाती थी। सभी मुद्राएं चैकोन,गोल तथा अंडाकार में मिली है। सभी प्राप्त मुद्राएं चैकोन,गोल तथा अंडाकार में मिली है। ऐसा प्रतीत होता है कि इन मुद्राओं का प्रयोग व्यापारिक क्रिया कलापों में बाहर भेजी जाने वाली गाँठों पर छाप लगाने के लिए किया जाता रहा होगा।
प्राप्त मुर्तियांे के अध्ययन  से पता चलता है उस वक्त लोगों का पहनावा कैसे था। महिला और पुरूष किस प्रकार के कपड़े पहनते थे।
 खुदाई में 2000 प्रकार के मुद्राएं प्राप्त हुई हैं ।

सभ्यता का अंतः

सवाल यह उठता है कि इतनी उन्नत सभ्यता खत्म कैसे हो गई । इस संबंध में इतिहासकारों में अलग-अलग मत है।
कुछ यह मानते हैं प्राकृतिक आपदा जैसे  बाढ़ या भूकंप इत्यादि से खत्म हो गई होगी।
तो कुछ यह मानते हैं कि महामारी, विदेषी आक्रमणों के कारण या सिन्धु नदी द्वारा दिषा बदलने के कारण सम्भवतः ये सभ्यता खत्म हुई हागी।
कारण जो भी मगर इस सभ्यता ने विष्व इतिहास को एक प्रचीन सभ्यता से परिचय करा दिया ।

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Dec 10, 2019

अंग्रेजों ने भारत में किस प्रकार पैर जमाए


आरम्भिक काल (1600 -1650 ) सर थॉमस रो 1619 में अपने देश लौट गया , इस समय सूरत, भड़ौच , आगरा एवम अहमदाबाद में  अंग्रेजों की व्यापारिक बस्तियां स्थापित हो चुकी थीं / अपनी इस सफलता से उत्साहित होकर कंपनी ने अपने व्यापार को और अधिक विस्तृत करने का निर्णय लिया / उन्होंने मछलीपत्तनम से 230 मील दूर एक छोटे से भूभाग पर एक कारखाना  बना लिया / जिसका नाम था फोर्ट सैंट जोर्ज़ / जो बाद में मद्रास के नाम से प्रसिद्ध हुआ / 16 42 में यही कंपनी का केंद्र बन गया / 1650 में हुगली में भी व्यापारिक केंद्र स्थापित किये गए /
Saint George fort
इस ब्लॉग का उद्येश यह है कि किस तरह भारत में अलग अलग यूरोपियों ने अपना अधिपत्य ज़माने की कोशिश की और कौन-कौन से वे योरोपियन जातियां थी जो अपने पैर जमाये /
वे सभी यहाँ शुरू शुरू में व्यापार के इरादे से यहाँ आये थे मगर भारत की आन्तरिक स्तिथि को देखते हुए अपना कब्ज़ा जमाना शुरू कर दिया /

क्या हुआ ?

अब आपको सीधे शुरुआत से मै जानकारी देता हूँ / 1498 में यूरोप से समुद्री मार्ग की खोज की तो यूरोपियन को एक बाज़ार की आस नज़र आई क्योकिं दक्षिण पूर्वी एशिया में प्रचुर मात्रा में  उन्हें अपने उत्पाद को बेचने का बाज़ार मिल गया /

इसके पीछे भी कारण है ? 

दरअसल ! वेनिस और जिनेवा का एशिया के व्यापार पर एकाधिकार था और वे पुर्तगालियों  तथा स्पेनिश को अलग रखा करते थे / यही कारण है पुर्तगालियों को नए व्यापारिक संबध बनाने के लिए नए मार्गो की तलाश करना ज़रूरी हो गया नतीजा यह हुआ कि  1492  स्पेन का नाविक कोलम्बस अमेरिका पंहुचा और पुर्तगाली नाविक वास्को डिगामा  1498 में भारत (कालीकट) पंहुचा /
हम अब भारत में यूरोपियों के आगमन की बात करते है /
ये तो तय है कि भारत में पहले कदम रखने वाले यूरोपीय और कोई नही पुर्तगाली ही थे
पुर्तगाली :- 1498 में वास्को डिगामा ने राजा जमोरिन [कालीकट की जमोरिन भारत के मलाबार तट पर कोझिकोड कालीकट राज्य का वंशानुगत सम्राट था। यह क्षेत्र भारत के प्रमुख व्यापारिक केन्द्रों में से एक था। ]से व्यापार करने की अनुमति मांगी मगर इस निवेदन के साथ कि किसी अन्य को कालीकट में व्यापार करने की अनुमति नही दी जाय / उस वक्त भारत में अरब के व्यापारियों का बोल बाला था / फिर अलबुकर्क 1505 में बतौर पुर्तगाली गवर्नर भारत में व्यापार बढाया फिर 1509 में गोवा, दमन और दीव में व्यापारिक केंद्र बनाए / कोचीन में तो पहले से ही पुर्तगाली व्यापारिक केंद्र था ही/ व्यापार फ़्रांस की खाड़ी से इंडोनेशिया तक फ़ैल गया /
ब्रिटिश राज 
पतन:-
पुर्तगालियों के पतन का कारण स्वयं पुर्तगाली ही थे / पुर्तगालियों के साथ एक बात और भी जुडी थी वो यह कि वे व्यापार के साथ –साथ इसाई धर्म प्रचार भी किया करते थे और मुसलमानों के कट्टर विरोधी थे  / वे हिन्दू और मुसलमानों को बल पूर्वक इसाई बनाने का प्रयास करने लगे /
पुर्तगाली ने अपनी जनसँख्या में वृद्धि करने के लिए भारतीय स्त्रियों के साथ व्यभिचार करना शुरू कर दिया और इसकी अनुमति व्यापारियों को उनके गवर्नर ने ही दी थी  जिससे पुर्तगालियों की लोकप्रियता कम होने लगी / इसके आलावा, पुर्तगाली अधिकारी व्यापारिक गति विधियों के साथ –साथ अन्य गतिविधियों में भी हिस्सा लेने लगे थे  जिस का परिणाम यह हुआ कि व्यापारिक पकड कम होने लगी /

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सन 1580 में पुर्तगाल स्पेन से युद्ध हार गया जिसका सीधा प्रभाव भारतीय व्यापार पर भी पड़ा /और पुर्तगाली अब ब्राजील की तरफ ध्यान देने लग गए क्योंकि ब्राजील की खोज ने उन्हें एक नया बाज़ार दे दिया , अब वे ब्राजील में अपना व्यापार स्थापित करने में लग गए लिहाजा भारत में उनका ध्यान कम होने लगा /इसके आलावा भारत में मराठा शक्ति भी पुर्तगालियों के रहे सहे ठिकानो पर कब्ज़ा करने लगी और पुर्तगालियों के पास भारत छोड़ने के आलावा कोई विल्कप नही बचा


फांसीसी हलचल


फांसीसी 1664 में भारत आए उनका उद्देष्य भी व्यापार करना ही था। सबसे पहले फांसीसियों ने 1668 में सूरत में अपना व्यापारिक केन्द्र बनाया और फिर 1669 में मछलीपट्टनम मे एक फैक्ट्री की नींव रखी । 1673 में बंगाल के मुगल सूबेदार ने चंदर नगर नामक एक टाउन बसाने की अनुमति दे दी। 
1674 में फ्रंासीसियों ने बीजापुर के सुल्तान से पांडेचेरी नामक गांव हासिल कर वहां से अपना पूरा करोबार चलाया । 1741 तक फां्रसीसी के व्यापार ही करते रहे और जोसेफ फ्रेन्कोइस डूप्ल्ेक्स के फ्रेच ईस्ट इंडिया कम्पनी के गर्वनर बनने के बाद  फ्रंासीसियों के इरादा यहां भारत में कब्जा जमाने का होने लगा । डॅप्ले बहुत ही चालाक गर्वनर था उसने यहां के राजाओं की आपसी दुष्मनी का भरपूर फायदा उठाना शुरू कर दिया । अपनी चालाकी से भारतीय राजनीति में उसकी काफी अच्छी पकड़ बना ली थी। 

उसके मार्ग पर के अंग्रेज रोड़ा बनकर उभरे । हैदराबाद और कैप कमेरियन  में कब्जा करने के बाद फांसीसियों के इरादे काफी बढ़ने लगे। और फिर अपनी प्रभुता बताने के लिए अंग्रेज और फांसिसियों का झगड़ शुरू हो गया। 1744 में अंग्रेज गर्वनर क्लाईव और डूप्ले की सेना का आमाना सामना हुआ। और डूप्ले को पराजय का सामना करना पड़ा। इसके बाद 1754  में डूप्ले को वापस बुला लिया गया । और फांसीसी हलचल भारत से खत्म हो गया। 


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